श्रद्धाराम फिल्लौरी की पुण्य तिथि कल, जानिए उनके बारे में रोचक बातें !
ॐ जय जगदीश हरे आरती घर-घर में प्रचलित है. तमाम धार्मिक आयोजनों के दौरान इस आरती को बहुत श्रद्धापूर्वक गाया जाता है, लेकिन हम में से ज्यादातर लोग ये नहीं जानते कि इस आरती के रचियता कौन हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जब भी किसी के घर में सत्यनारायण की कथा होती है या भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तो ॐ जय जगदीश हरे आरती जरूर गाई जाती है. इस आरती का हर एक शब्द भक्त की भावना को भगवान तक पहुंचाने वाला है, इसलिए ये आरती सभी भक्तों को भाव विभोर कर देती है.
लेकिन जन-जन में लोकप्रिय इस आरती के रचियता कौन हैं, इस बारे में लोगों को जानकारी नहीं है. इस आरती को पंजाब के फिल्लौर में जन्मे श्रद्धाराम शर्मा ने लिखा था. फिल्लौर से ताल्लुक रखने के कारण वे श्रद्धाराम फिल्लौरी के नाम से प्रचलित हो गए. 24 जून को पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी की पुण्य तिथि है. इस मौके पर जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें.
अंग्रेजी हुकूमत ने गांव से निकाला
श्रद्धाराम फिल्लौरी एक धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ और हिंदी और पंजाबी के प्रसिद्द साहित्यकार थे. उनका जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब के लुधियाना के फिल्लौर गांव में हुआ था. कहा जाता है कि श्रद्धाराम फिल्लौरी अपनी कथा में लोगों की भीड़ को इकट्ठा करके अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाया करते थे और देशवासियों के अंदर क्रांति की अलख जलाया गया करते थे. उन्होंंने अपनी किताबों के जरिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावती माहौल तैयार किया था. वहीं महाभारत के किस्से सुनाते हुए वे लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा होने की हिम्मत जगाया करते थे. इसकी वजह से अंग्रेजी हुकूमत उनसे चिढ़ गई और सन् 1865 में उन्हें उनके ही गांव से निष्काषित कर दिया. साथ ही आसपास के गांवों में भी प्रवेश पर रोक लगा दी.
ऐसे हुई आरती की रचना
कहा जाता है कि गांव से निष्काषित होने के बाद सन् 1870 में उन्होंने ॐ जय जगदीश हरे आरती की रचना की थी. इस आरती की रचना के पीछे भी एक रोचक किस्सा बताया जाता है. दरअसल पंडित जी उस समय पंजाब के विभिन्न स्थानों पर घूम-घूम कर लोगों को रामायण, महाभारत और भागवत कथा सुनाते थे. एक बार पंडित जी ने महसूस किया कि उनके व्याख्यानों को सुनने के लिए लोग सही समय पर नहीं आते. ऐसे में यदि कोई अच्छी आरती या प्रार्थना गाई जाए तो लोगों का ध्यान आकर्षित होगा और कथा में रुचि बढ़ जाएगी. इसके बाद ही श्रद्धाराम फिल्लौरी ने नारायण को समर्पित ॐ जय जगदीश हरे आरती लिखी.
इस तरह घर घर में प्रचलित हो गई आरती
भागवत कथा के दौरान श्रद्धाराम फिल्लौरी ॐ जय जगदीश हरे आरती को गाया करते थे. इससे उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी और लोगों ने उन्हें देश के तमाम हिस्सों में सत्संग में बुलाना शुरू कर दिया. इस आरती के शब्दों ने लोगों के भक्तिभाव को कहीं ज्यादा बढ़ा दिया. एक-दूसरे को सुनते सुनाते इस आरती का प्रसार होता चला गया है और धीरे धीरे ये आरती घर- घर में प्रचलित हो गई.
पादरी के प्रयासों से हुई घर वापसी
पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी के ज्ञान से पादरी फादर न्यूटन काफी प्रभावित थे. वे उनका बहुत सम्मान करते थे. जब उन्हें पंडित जी के गांव से निकाले जाने की बात पता चली तो उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को बहुत समझाया. इसके बाद पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी की दोबारा घर वापसी हुई.
बचपन से ही मेधावी थे
कहा जाता है कि पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी बचपन से ही काफी मेधावी थे. उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की. दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी और ज्योतिष की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के ज्ञाता बन गए. हिन्दी साहित्य के पहले उपन्यास भाग्यवती का रचनाकार पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी को ही माना जाता है. इसके अलावा भी उन्होंने अनेक रचनाएं कीं. 24 जून 1881 में इस महान विभूति ने संसार को अलविदा कह दिया.