चाणक्य के अनुसार इन तीन चीजों में संतोष करना सिखा गाये तो जीवन नहीं होगा कष्टकारी

मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वो कभी संतोष नहीं करता. उसे जितना मिलता जाता है, उसकी इच्छाएं उतनी ही बड़ी होती जाती हैं.

Update: 2021-04-30 10:14 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वो कभी संतोष नहीं करता. उसे जितना मिलता जाता है, उसकी इच्छाएं उतनी ही बड़ी होती जाती हैं. वो हर दिन और अधिक पाने की चेष्टा करता है. लेकिन आचार्य चाणक्य का मानना था कि कुछ चीजों में हर व्यक्ति को संतोष करना आना चाहिए. अगर उन चीजों में असंतोष बना रहेगा तो जीवन कष्टकारी हो जाएगा. वहीं कुछ जगहों पर असंतोष भी जरूरी है. चाणक्य नीति के तेरहवें अध्याय के 19वें श्लोक में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि हमें किन चीजों में संतोष करना चाहिए और किन चीजों में नहीं, आइए जानते हैं.

संतोषषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने
त्रिषु चैव न कर्तव्यो अध्ययने जपदानयोः
1- आचार्य चाणक्य के मुताबिक पत्नी अगर आपके मन के मुताबिक सुंदर न भी हो, तो भी संतोष करना चाहिए. चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन विवाह के बाद कभी भी किसी पुरुष को अन्य स्त्रियों के पीछे नहीं भागना चाहिए वर्ना उसका जीवन बर्बाद हो जाता है. व्यक्ति को पत्नी की बाहरी खूबसूरती से ज्यादा उसके गुणों को देखना चाहिए. एक सुशील पत्नी किसी भी शख्स के जीवन को सुखमय बना सकती है.
2- इसके अलावा भोजन जैसा भी मिले, उसे खुशी से ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए. दुनिया में तमाम लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें उतना भी नसीब नहीं होता. इसलिए जब भी किसी तरह के विचार मन में आएं तो उन लोगों के बारे में सोचें. आपको जो मिला है वो प्रभु की मर्जी से मिला है. उसे खुशी से ग्रहण करना सीखें.
3- वहीं व्यक्ति के पास जितना पैसा हो, उसमें उसे संतोष करना चाहिए. ज्यादा पैसे की चाह में कोई गलत काम नहीं करना चाहिए और न ही किसी अन्य के धन पर नजर डालनी चाहिए. ये आदतें जीवन में समस्याओं को पैदा करती हैं जो आगे चलकर बड़ी मुसीबत और दुख का रूप ले लेते हैं. इसलिए अपनी आय पर संतोष करना सीखें और आय के अनुसार ही धन व्यय करें.
ये तो थीं वे बातें जिनमें व्यक्ति को संतोष करना आना चाहिए. लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जहां हमेशा असंतोष होना चाहिए यानी हमेशा और बढ़कर करने की मंशा होनी चाहिए. चाणक्य के अनुसार अध्ययन, दान और जप में कभी भी संतोष नहीं करना चाहिए क्योंकि आप जितना ज्यादा करेंगे, उतना अधिक पुण्य का संचय करेंगे और मान सम्मान पाएंगे.


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