सोमनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव का देखिए प्रातः का श्रृंगार

सोमनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं.

Update: 2021-10-17 16:03 GMT

गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ का सबसे ज्यादा महत्व है, क्योंकि यहां प्रथम ज्योतिर्लिंग अवस्थित है.आदिदेव का अलौकिक रूप यहीं पर विराजमान हैं. यह भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है.ऋग्वेद में भी इस मंदिर का वर्णन है. हिंदू धर्म में इस स्थान को अत्यधिक पवित्र माना गया है. मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर का निर्माण भगवान चन्द्र देव ने करवाया था. इस मंदिर का इतिहास हिंदू धर्म के उत्थान और पतन का प्रतीक है. धन, संपत्ति, वैभव और प्रगाढ़ आस्था के कारण यह मंदिर देश ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. भारत पर विदेशी आक्रमणों के दौरान महमूद गजनवी से लेकर अलाऊद्दीन खिलजी तक ने इस मंदिर को 17 बार ध्वस्त किया है, लेकिन जितनी बार यह मंदिर ध्वस्त हुआ है, उतनी ही बार पहले से ज्यादा वैभव और विराट रूप में खड़ा हो गया है. आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल और के एम मुंशी ने इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया और 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपित डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया. आप इस लिंक के माध्यम से सोमनाथ मंदिर में आज का प्रातः श्रृंगार देख सकते हैं.

प्राचीनतम धर्मस्थान
गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर में भव्य श्रृंगार देखना अलौकिक अनुभूति है. भगवान शिव की छटा निराली है. माना जाता है कि इस मंदिर देवाधिदेव भगवान महादेव के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं. इस मंदिर को आदि मंदिर का दर्जा प्राप्त है. मान्यता के अनुसार भगवान शिव का सबसे पहला मंदिर है. भगवान सोमनाथ मंदिर का उल्लेख स्कंदपुराणम, श्रीमद्भाहगवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. वे भगवान्‌ शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं. मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है. उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य स्वयमेव सफल हो जाते हैं.



श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,
प्रथम ज्योतिर्लिंग – गुजरात (सौराष्ट्र)
दिनांकः 17 अक्तूबर 2021, आश्विन शुक्ल द्वादशी – रविवार
प्रातः शृंगार
भगवान कृष्णा से भी जुड़ा है यह तीर्थस्थान
सोमनाथ मन्दिर के आसपास दो महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थल है. जिस कारण से इस क्षेत्र का महत्व और भी बढ़ जाता है. मन्दिर से पांच किलोमीटर की दूरी पर भालका तीर्थ है, लोक कथाओं के अनुसार यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्यागा था और एक किलोमीटर दूर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम है. इसे त्रिवेणी कहा जाता है. माना जाता है कि इसी त्रिवेणी संगम पर भगवान श्रीकृष्ण की नश्वर देह का अग्नि संस्कार किया गया था. इसलिए, त्रिवेणी में स्नान से बहुत पुण्य प्राप्त होता है. ऐसा माना जाता है की भगवान कृष्णा की सिमंतक मनी सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग में स्थापित है.


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