सावन का दूसरा प्रदोष व्रत आज, जानें शुभ मुहूर्त और मंत्र
पंचांग के अनुसार, हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। वहीं सावन मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का काफी महत्व होता है। आज मंगलवार होने के कारण इसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जानते हैं। सावन का आखिरी प्रदोष व्रत काफी खास है। क्योंकि भौम प्रदोष व्रत के साथ श्रावण मास का आखिरी मंगला गौरी व्रत भी पड़ रहा है।
पंचांग के अनुसार, हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। वहीं सावन मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का काफी महत्व होता है। आज मंगलवार होने के कारण इसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जानते हैं। सावन का आखिरी प्रदोष व्रत काफी खास है। क्योंकि भौम प्रदोष व्रत के साथ श्रावण मास का आखिरी मंगला गौरी व्रत भी पड़ रहा है। ऐसे में मंगलवार के दिन भगवान शिव, माता पार्वती के साथ भगवान हनुमान की पूजा करने का विशेष फल प्राप्त होगा।
मान्यता है कि जो व्यक्ति भौम प्रदोष व्रत रखता हैं उसे कर्ज से छुटकारा मिलने के साथ रोगों से निजात मिलती है। जानें मंगल प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि।
भौम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
सावन मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ- 9 अगस्त, मंगलवार की शाम 5 बजकर 45 मिनट से शुरू
त्रयोदशी तिथि समाप्त- 10 अगस्त, बुधवार को दोपहर 2 बजकर 15 मिनट तक
शाम को पूजन होने के कारण प्रदोष व्रत मंगलवार को ही रखा जाएगा।
प्रदोष का शुभ मुहूर्त- 9 अगस्त शाम 7 बजकर 6 मिनट से रात 9 बजकर 14 मिनट तक
भौम प्रदोष व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें।
स्नान कर साफ सूखे वस्त्र धारण कर लें।
भगवान शिव का मनन करते हुए व्रत का संकल्प करें और दिनभर बिना अन्न ग्रहण किए व्रत रखें।
शाम के समय स्नान आदि करने के साथ सफेद रंग के वस्त्र धारण कर लें।
उत्तर-पूर्व दिशा के मध्य यानी ईशान कोण में थोड़ी सी जगह को साफ करके गंगाजल छिड़क दें।
अब यहां पर 5 रंगों के फूलों या फिर अपने मनमुताबिक फूल या रंग से रंगोली बना लें।
इस रंगोली के ऊपर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर दें।
खुद कुश बिछाकर बैठ जाएं और भगवान शिव की पूजा प्रारंभ करें।
सबसे पहले गंगाजल अर्पित करें।
फिर पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें।
अब भोग में कोई मिठाई अर्पित करते हुए जल चढ़ाएं।
घी का दीपक और धूप जला दें
शिव चालीसा के साथ प्रदोष व्रत की कथा का पाठ कर लें।
फिर विधिवत तरीके से आरती कर लें
अंत में अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा मांग लें।
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