Saphala Ekadashi 2021: कब है सफला एकादशी, जानें तिथि, मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व

पौष मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहते हैं।

Update: 2021-01-03 14:45 GMT

Saphala Ekadashi 2021: कब है सफला एकादशी, जानें तिथि, मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :  पौष मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है जो व्यक्ति सफला एकादशी का व्रत रखता है। उसकी सभी मनोकामनाएं सफल होती हैं। सफला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु जी के लिए रखा जाता है। इस दिन विधिवत उनकी आराधना होती है। आइए जानते हैं सफला एकादशी व्रत विधि, मुहूर्त, महत्व और कथा।

कब है सफला एकादशी 2021
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल सफला एकादशी व्रत पौष माह कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस साल 9 जनवरी को सफलता एकादशी व्रत रखा जाएगा।
सफला एकादशी मुहूर्त 
एकादशी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 08, 2021 को रात 9:40 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - जनवरी 09, 2021 को शाम 7:17 बजे तक
सफला एकादशी व्रत विधि 
सफला एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर सूर्यदेव को जल दें।
इसके बाद व्रत-पूजन का संकल्प लें।
सुबह भगवान अच्युत की पूजा-अर्चना करें।
भगवान को धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करें।
नारियल, सुपारी, आंवला अनार और लौंग आदि से भगवान अच्युत को अर्पित करें।
रात्रि जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करें।
अगले दिन द्वादशी पर व्रत खोलें।
गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं, उन्हेंर दान-दक्षिणा दें।
सफला एकादशी का महत्व
पद्म पुराण में सफला एकादशी व्रत का महत्व बताया गया है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया है कि सफला एकादशी व्रत के देवता श्री नारायण हैं। जो व्यक्ति सफला एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है और रात्रि में जागरण करता है, ईश्वर का ध्यान और श्री हरि के अवतार एवं उनकी लीला कथाओं का पाठ करता है उनका व्रत सफल होता है। इस प्रकार से सफला एकादशी का व्रत करने वाले पर भगवान प्रसन्न होते हैं। व्यक्ति के जीवन में आने वाले दुःखों को पार करने में भगवान सहयोग करते हैं। जीवन का सुख प्राप्त कर व्यक्ति मृत्यु के पश्चात सद्गति को प्राप्त होता है।
सफला एकादशी की कथा
पद्म पुराण में सफला एकादशी की जो कथा मिलती है उसके अनुसार महिष्मान नाम का एक राजा था। इनका ज्येष्ठ पुत्र लुम्पक पाप कर्मों में लिप्त रहता था। इससे नाराज होकर राजा ने अपने पुत्र को देश से बाहर निकाल दिया। लुम्पक जंगल में रहने लगा।
पौष कृष्ण दशमी की रात में ठंड के कारण वह सो न सका। सुबह होते होते ठंड से लुम्पक बेहोश हो गया। आधा दिन गुजर जाने के बाद जब बेहोशी दूर हुई तब जंगल से फल इकट्ठा करने लगा। शाम में सूर्यास्त के बाद यह अपनी किस्मत को कोसते हुए भगवान को याद करने लगा। एकादशी की रात भी अपने दुखों पर विचार करते हुए लुम्पक सो न सका।
इस तरह अनजाने में ही लुम्पक से सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इस व्रत के प्रभाव से लुम्पक सुधर गया और इनके पिता ने अपना सारा राज्य लुम्पक को सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गए। काफी समय तक धर्म पूर्वक शासन करने के बाद लुम्पक भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।


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