Sankashti Chaturthi: इस कथा के बिना पूरी नहीं होगी संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा
Sankashti Chaturthi ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन विनायक चतुर्थी को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में आता है यह तिथि गणपति की पूजा अर्चना को समर्पित है इस दिन भक्त भगवान को प्रसन्न रखने के लिए पूजा पाठ और व्रत आदि करते हैं। संकष्टी चतुर्थी को नई शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है इस दिन लोग नए कार्य की शुरुआत करते हैं।
मार्गशीर्ष मास की संकष्टी चतुर्थी आज यानी 18 नवंबर दिन सोमवार को मनाई जा रही है इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना और व्रत करना लाभकारी माना जाता है मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी पर पूजा पाठ करने से प्रभु की असीम कृपा बरसती है लेकिन कोई भी व्रत बिना कथा के पूर्ण नहीं माना जाता है तो ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा, तो आइए जानते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान राम के पिता दशरथ एक प्रतापी राजा थे. उन्हें शिकार करना बहुत ही अच्छा लगता थ. एक बार अनजाने में उनसे एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का वध हो गया. उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा दशरथ को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी तरह तुम्हारी भी पुत्र वियोग में मृत्यु होगी. इससे राजा बहुत परेशान हो गए. उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया. फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में उनके यहां अवतार लिया. वहीं भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुईं.
पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण वन को गए जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षसों का वध किया. इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया. फिर सीता की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग किया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव से मित्रता की. इसके बाद सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए. उन्हें ढूंढते-ढूंढते गिद्धराज संपाती को देखा. वानरों को देखकर संपाती ने उनकी पहचान पूछी कहा कि तुम कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? किसने तुम्हें भेजा है?
संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडक वन में आए हैं. जहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपरहण हो गया है. हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां हैं?
संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो. सीता जी का जिसने हरण किया है वह मुझे मालूम है. सीता जी को बचाने के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है. यहां से थोड़ी ही दूर पर ही समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है. वहीं अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हैं. सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं. सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है. अतः उन्हें वहां जाना चाहिए, क्योंकि सिर्फ हनुमान जी ही अपने पराक्रम से इस विशाल समुद्र को लांघ सकते हैं.
संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं कैसे पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उसे पार करने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं? संपाति ने हनुमान जी को उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करो. उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लोगे.
संपाती के कहने पर ही हनुमान भगवान ने संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को किया. इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में ही समुद्र को लांघ गए. अत: इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं.