SAWAN सावन: महा चल रहा है। कहते हैं कि सावन माह भगवान शिव को अति प्रिय है। इस माह में भगवान शिव की श्रृद्धा पूर्वक उपासना करने से मनचाहा वरदान मिल जाता है, लेकिन अगर आप भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो घर से कुछ चीजों को तुरंत बाहर निकाल दें। क्यों कि कहा जाता हैं कि इन चीजों को घर में रखने से कभी भी पूजा सफल नहीं होती है।
सावन का आखरी सोमवार 19 अगस्त को है। कहते हैं कि सावन माह भगवान शिव को अति प्रिय है। इस माह में भगवान शिव की श्रृद्धा पूर्वक उपासना करने से मनचाहा वरदान मिल जाता है। चारों ओर भक्त सकारात्मक और भक्ति भाव में लीन रहते हैं। हर तरफ सकारात्मक ऊर्जा मौजूद रहती है। सावन में महादेव को खुश करने के लिए भक्त तरह तरह उपासना करते हैं। कोई जलाभिषेक करता है तो कोई रोजान पाठ करके भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहता है।
वास्तु के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ खास चीजों का ध्यान रखना काफी जरूरी होता है। वास्तु के अनुसार कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें सावन के महीने में घर में नहीं रखना चाहिए। जिससे घर में सकारात्मकता बनी रहे।
सावन में इन चीजों को न करें अनदेखा
न रखें ये चीज- सावन में भगवान शिव की पूजा का फल तभी मिलता है जब व्यक्ति तन-मन दोनों से साफ हो। सावन में घर में अंडा, मास, प्याज और लहसुन न रखें और न ही खाएं। इनके घर में होने से पूजा पाठ का फल नहीं मिलता है साथ ही धन हानि भी होती है।
खंडित मूर्ति- सावन माह में खंडित मूर्ति घर में नहीं रखनी चाहिए. मान्यता है इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। खंडित मूर्तियों को नदी या तालाब में प्रवाहित कर देनी चाहिए या फिर किसी मंदिर या पीपल के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए।
लगाएं ये पौधा- शास्त्रों और वास्तु के अनुसार घर में तुलसी का होना बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है। सावन के महीने में घर में तुलसी का पौधा जरुर लगाएं और उसे हरा-भरा रखें। घर के उत्तर व पूर्व दिशा की ओर तुलसी का पौधा लगाना चाहिए और हर दिन पूजा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। इस बात का ध्यान जरुर रखें कि भगवान शिव पूजा में तुलसी का प्रयोग बिल्कुल ना करें।
इस तरह सोएं- सावन माह चातुर्मास का पहला महीना है। सावन में बिस्तर का त्याग कर जमीन पर सोना शुभ माना गया है। इसके साथ ही लोगों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सावन माह में व्रत रखने वालों को शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। कहा जाता है कि अपनी इंद्रियों पर काबू पाने के बाद ही ईश्वर की पूजा करने को सफल माना जाता है।