मां लक्ष्मी की उत्पत्ति से जुड़ी धार्मिक कथा, जाने

शुक्रवार के मां लक्ष्मी की विधि-पूर्वक पूजा-उपासना की जाती जाती है। मां को लाल रंग अति प्रिय है। अतः शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को लाल या गुलाबी रंग की फूल अर्पित करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Update: 2022-02-11 04:30 GMT

शुक्रवार के मां लक्ष्मी की विधि-पूर्वक पूजा-उपासना की जाती जाती है। मां को लाल रंग अति प्रिय है। अतः शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को लाल या गुलाबी रंग की फूल अर्पित करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि मां बेहद चंचल होती है। एक जगह पर अत्यधिक समय तक नहीं रहती है। इसके लिए व्यक्ति को हमेशा मां की सेवा में कार्यरत रहना चाहिए। उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिए। इन्हें धन की देवी कहा जाता है। इनके आगमन से घर में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही घर से दरिद्रता दूर हो जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि मां लक्ष्मी की उत्पत्ति कैसे हुई है ? आइए जानते हैं-

धार्मिक कथा

विष्णु पुराण के अनुसार, चिरकाल में एक बार ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग के देवता राजा इंद्र को सम्मान में फूलों की माला दी, जिसे राजा इंद्र ने अपने हाथी के सिर पर रख दिया। हाथी ने फूलों की माला को पृथ्वी पर फेंक दिया था। यह देख ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे और उन्होंने राजा इंद्र को शाप दिया कि आपके इस अहंकार की वजह से आपका पुरुषार्थ क्षीण हो जाएगा और आपका राज-पाट छिन जाएगा। इसके बाद कालांतर में दानवों का आतंक इतना बढ़ गया कि तीनों लोकों पर दानवों का आधिपत्य हो गया। इस वजह से राजा इंद्र का सिहांसन भी छिन गया। तब देवतागण भगवान विष्णु के शरण में जा पहुंचे। भगवान ने देवताओं को समुद्र मंथन की सलाह देते हुए कहा कि इससे आपको अमृत की प्राप्ति होगी, जिसका पान करने से आप अमर हो जाएंगे। इस अमरत्व की वजह से आप दानवों को युद्ध में परास्त करने में सफल होंगे। भगवान के वचनानुसार, देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया, जिससे 14 रत्न सहित अमृत और विष की प्राप्ति हुई। इस समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी की भी उत्पत्ति हुई, जिसे भगवान विष्णु ने अर्धांग्नी रूप में धारण किया। जबकि देवताओं ने अमृत की प्राप्ति हुई, जिसका पान कर देवतागण अमर हो गये। कालांतर में देवताओं ने दानवों को महासंग्राम में परास्त कर अपना राज पाट प्राप्त किया। इस अमरत्व से राजा इंद्र ऋषि दुर्वासा के शाप से भी मुक्त हो गये।


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