Ramayan : वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह वह समय था, जब किशोर राम अपने चारों भाइयों के साथ अयोध्या में खेलकूद में व्यस्त थे. इस दौरान गुरु वशिष्ठ ने उन्हें धर्म की शिक्षा देते और पिता राजकाज की. एक दिन पंचवटी में आश्रम बनाकर तपस्या कर रहे गुरु विश्वामित्र अयोध्या आए और उन्हें राजा दशरथ से कहा कि उनके आश्रम में आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ गया, वो रोज आकर यज्ञ और तपस्या में विघ्न डाल रहे हैं. ऐसे में एक राजा के तौर पर उनका कर्तव्य है कि वह अपने पुत्रों को उनके आश्रम की रक्षा के लिए भेजें, वहां वह उन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा भी देंगे.
रावण ने बनाया था सूबे का अधिपति
विश्वामित्र के आग्रह पर दशरथ ने उनके साथ राम और लक्ष्मण को भेज दिया. दोनों भाई आश्रम आए तो यहां ताड़का नामक आसुरी ने ऋषि-मुनि और गांव वालों पर अत्याचार कर रखा था. उसने न सिर्फ उनके यज्ञ विध्वंस किए बल्कि गुरुकुल चलाने देने में भी अव्यवस्था पैदा की. यह ताड़का मारीच और सुबाहु की मां थी. जन्म से तो यह यक्षिणी थी, लेकिन विवाह राक्षस से होने के कारण राक्षसी बन गई और आसुरी वृत्ति ही अपना लिया. रावण ने इसकी शक्ति देखते हुए इसे अपने अधिकृत सूबे का अधिपति नियुक्त किया.
साठ पुत्रों के साथ आई थी ताड़का
आश्रम में राम लक्ष्मण को देखते ही ताड़का ने दोनों भाइयों पर आक्रमण किर दिया. उसके साठ बलवान असुर पुत्र भी राम-लक्ष्मण पर टूट पड़े. ऐसे में विष्णु अवतार श्रीराम ने अपने बाणों से ताड़का को छलनी कर डाला. उसकी वहीं मृत्यु हो गई, इसके अलावा राम ने उसके बेटे सुबाहु का भी वध कर दिया. इसके अलावा मारीच को बाणों से घायलकर सीधे सैकड़ों योजन दूर समुद्र में फेंक दिया. इधर, लक्ष्मण बची-खुची राक्षस सेना का वध कर डाला. यह एक रामायण काल का इकलौता युद्ध था, जिसमें महिला योद्धा मैदान में उतरी और मारी गई.