चित्रगुप्त के पूजा में ऐसे करें स्तुति और आरती, आपको मिलेगी नर्क से मुक्ति

भगवान चित्रगुप्त को देवलोक धर्म अधिकारी के नाम से भी जाना जाता है। इनका प्राकट्योत्सव यम द्वितिया के दिन मनाया जाता है।

Update: 2021-11-06 02:59 GMT

भगवान चित्रगुप्त को देवलोक धर्म अधिकारी के नाम से भी जाना जाता है। इनका प्राकट्योत्सव यम द्वितिया के दिन मनाया जाता है। भगवान चित्रगुप्त का संबंध लेखन कार्य से होने के कारण इस दिन कलम और दवात की पूजा भी की जाती है। भगवान चित्रगुप्त का वर्णन पद्य पुराण, स्कन्द पुराण, ब्रह्मपुराण, यमसंहिता व याज्ञवलक्य स्मृति आदि धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी की काया से हुई है। इसीलिए इनके वंश को कायस्थ कहा जाता है। चित्रगुप्त के पूजन में उनकी स्तुति और आरती का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से आपको ज्ञान, संपदा और नर्क से मुक्ति का वरदान मिलता है...

।। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति ।।

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।

जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।

कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो।

जय श्यामतम, चित्रेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

पुरुषादि व भगवत अंश जय, कास्यथ कुल, अवतंश जय।

जय शक्ति, बुद्धि विवेक तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय विज्ञ शाश्वत धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।

जय शांति न्यायाधीश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

तब नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भव, त्रय ताप से।

हो दूर सर्व कलेश मम्, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय दीन अनुरागी हरी, चाहें दया दृष्टि तेरी।

कीजै कृपा करूणेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।

जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

।। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती ।।

ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।

भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे।।

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।

भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ओम् जय...।।

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।

मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै।। ओम् जय...।।

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।

सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकट भये स्वामी।। ओम् जय..।।

कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।

वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै।। ओम् जय...।।

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये।

कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये।। ओम् जय...।।

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।

वेग, विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा।। ओम् जय...।।

दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।

जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता।। ओम् जय...।।

बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम् जय...।।

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, निश दिन नित गावैं।

मान प्रतिष्ठा पाए जगत में , अमर लोक जावे ।।

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।

हम हैं शरण तिहारे, आस न दूजी करते।। ओम् जय...।।

ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।


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