Parvati Mantra: हरियाली तीज पर शिव-शक्ति को प्रसन्न करने के लिए करें ये काम
Parvati Mantra ज्योतिष न्यूज़: हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन हरियाली तीज को बेहद ही खास माना जाता है जो कि सावन के महीने में मनाया जाता है यह तिथि शिव पार्वती की पूजा अर्चना को समर्पित होती है इस दिन शादीशुदा महिलाएं उपवास रखते हुए शिव पार्वती की भक्ति करती है माना जाता है कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है
इस साल हरियाली तीज का त्योहार 7 अगस्त दिन बुधवार यानी की आज देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है ये व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिए खास होता है इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला उपवास करती है। इसके अलावा कुंवारी कन्याएं इस दिन मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए पूजा पाठ करती है मान्यता है कि आज के दिन अगर पूजा के दौरान शिव शक्ति के चमत्कारी मंत्रो का जाप किया जाए तो सुख समृद्धि में वृद्धि होती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शिव पार्वती के चमत्कारी मंत्र।
मां पार्वती के मंत्र
ॐ उमायै नम:
ॐ पार्वत्यै नम:
ऊं जगद्धात्र्यै नम:
ॐ जगत्प्रतिष्ठयै नम:
ॐशांतिरूपिण्यै नम:
ॐ शिवायै नम:
शिव जी के मंत्र
ॐ हराय नम:
ॐ महेश्वराय नम:
ॐ शम्भवे नम:
ॐ शूलपाणये नम:
ॐ पिनाकवृषे नम:
ॐ शिवाय नम:
ॐ पशुपतये नम:
ॐ महादेवाय नम:
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥