Parivartini Ekadashi 2021: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 सितंबर से शुरू हो रही है, जानें पूजा विधि और महत्व
पहली एकादशी कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में पड़ती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 सितंबर से शुरू हो रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। हर माह दो एकादशी तिथियां आती हैं। पहली एकादशी कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में पड़ती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 सितंबर से शुरू हो रही है। भादो मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी, जलझूलनी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि को भगवान विष्णु चतुर्मास के शयन के दौरान अपने करवट बदलते हैं। यानी भगवान विष्णु की शयन अवस्था में परिवर्तन होता है। इसलिए इसे परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है।
परिवर्तनी एकादशी तिथि कब तक-
हिंदू पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 16 सितंबर, गुरुवार को सुबह 09 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी, जो कि 17 सितंबर की सुबह 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगी। इसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। 16 सितंबर को एकादशी तिथि पूरे दिन रहेगी। उदया तिथि में व्रत रखने की मान्यता के अनुसार परिवर्तनी एकादशी व्रत 17 सितंबर, शुक्रवार को रखा जाएगा।
परिवर्तनी एकादशी शुभ मुहूर्त-
पुण्य काल- सुबह 06 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक। पूजा की कुल अवधि- 06 घंटे 08 मिनट तक रहेगी। इसके बाद 17 सितंबर को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक महापुण्य काल रहेगा। इसकी अवधि 02 घंटे 03 मिनट की है।
पंचांग-पुराण से और
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महत्व-
परिवर्तनी एकादशी को सभी दुखों से मुक्ति दिलाने वाली माना जाता है। इस दिन को करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया जाता है। इसलिए इस एकादशी को डोल ग्यारल भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सब कुछ दान में मांग लिया था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी प्रतिमा भगवान विष्णु ने सौंप दी थी। इस वजह से इसे वामन ग्यारस भी कहते हैं।
पूजन सामग्री लिस्ट-
भगवान विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, अक्षत, पंचामृत, भोग, तुलसी दल और चंदन आदि।
एकादशी व्रत पूजा- विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।