स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंस ने जानें क्‍यों कहा क‍ि सांसार‍िक ज‍िम्‍मेदार‍ियों से हटकर नहीं मिलेगी मुक्ति?

उन दिनों चारों ओर स्वामी रामकृष्ण परमहंस की चर्चा थी।

Update: 2021-04-21 10:32 GMT

जनता से रिश्ता वेबेडेस्क: उन दिनों चारों ओर स्वामी रामकृष्ण परमहंस की चर्चा थी। युवा पीढ़ी में उनका शिष्य बनने की होड़ सी लगी थी। दूर-दूर से युवक आते और उनसे शिष्य बनने की प्रार्थना करते। एक दिन इसी उद्देश्य से एक उत्साही युवक रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचा। परमहंस के चरणों में झुक कर उसने कहा, 'गुरुदेव, मुझे अपना शिष्य बनाकर गुरु मंत्र दीजिए, ताकि मैं भी एक संत बन सकूं।' युवक की बात सुनकर परमहंस मुस्कुराए, मगर चुप रहे।

कुछ देर बाद परमहंस ने उससे पूछा, 'यह बताओ कि तुम्हारे परिवार में तुम्हारे अलावा और कौन-कौन लोग हैं?' युवक बोला, 'मेरे अलावा सिर्फ मेरी एक बूढ़ी मां है।' अब परमहंस ने पूछा, 'तुम साधु क्यों बनना चाहते हो?' 'मैं इस मोह-माया और ऊंच-नीच से भरे संसार को छोड़कर मुक्ति पाना चाहता हूं', युवक बोला। इस पर परमहंस ने कहा, 'तुम मुक्ति नहीं चाहते, बल्कि अपनी जवाबदेही से भाग रहे हो। मुक्ति तो एक बहाना है। तुम्हारी सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। तुम्हें लगता है कि साधु बनकर तुम बिना किसी दायित्व के जीवन गुजार लोगे। तुम समझते हो, तुम्हारा काम तो चल जाएगा, बाकी लोग चाहे जो करें।'
स्वामी जी बोले, 'यह साधना नहीं है। आजकल बहुत से लोग ऐसा ही कर रहे हैं। यह अपनी शक्ति का दुरुपयोग है। यह समझ लो कि अपनी मां को छोड़कर तुम्हें मुक्ति कभी नहीं मिलेगी। तुम्हारी सच्ची मुक्ति इसी में है कि तुम अपनी बूढ़ी और असहाय मां की सेवा करो। वह ईश्वर का ही रूप है।' यह सुनकर उस युवक ने साधु बनने की योजना छोड़ दी। उसे इस बात का अहसास हो गया कि सांसारिक जिम्मेदारियों से परे हटकर आध्यात्मिक मार्ग पर सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती, और वह घर लौट कर अपनी मां की सेवा में जुट गया।
संकलन : दीनदयाल मुरारका
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