शरद पूर्णिमा के दिन करें मां लक्ष्मी के इन्द्रकृत स्तोत्र का जाप

हिन्दू धर्म में माता लक्ष्मी को धन की देवी के रूप में पूजा जाता है। बता दें कि अश्विन मास के अंतिम दिन शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी, चंद्र देव और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है।

Update: 2022-10-09 05:37 GMT

हिन्दू धर्म में माता लक्ष्मी को धन की देवी के रूप में पूजा जाता है। बता दें कि अश्विन मास के अंतिम दिन शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी, चंद्र देव और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है। इस वर्ष शारद पूर्णिमा पर्व 9 अक्टूबर 2022, रविवार (Sharad Purnima 2022 Date) के दिन मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने से कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं और धन व ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।

शास्त्रों में माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के कई मंत्र और उपाय बताए गए हैं। जिनका उच्चारण करने से सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं। इन्ही में से एक मां लक्ष्मी को समर्पित स्तोत्र है जिसे बहुत प्रभावशाली माना गया है। शरद पूर्णिमा के दिन इस स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति को बहुत लाभ होता है।

मां लक्ष्मी स्तोत्रम्

नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः ।

कृष्णप्रियायै सततं महालक्ष्म्यै नमो नमः ।।

पद्धपत्रेक्षणायै च पद्धास्यायै नमो नमाः ।

पद्धासनायै पद्धिन्यै वैश्वण्यै व नमो नमः ।।

सर्व सम्पत स्वरूपिण्यै सर्वाराध्ये नमो नमः ।

हरि भक्ति प्रदात्र्यै व हर्षदात्र्यै नमो नमः।।

कृष्ण वक्षस्थितायै च कृष्णेशायै नमो नमः ।।

चंद्रशोभा स्वरूपायै महादेव्यै नमो नमः ।।

सम्पत्य धिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नमाः ।

नमो वृद्धि स्वरूपायै वृद्धिदायै नमो नमः।।

बैकुण्ठे या महालक्ष्मी या लक्ष्मी क्षीर सागरे ।

स्वर्गलक्ष्मीरींद्रगेहे राजलक्ष्मीर्नृपालये ।।

गृहलक्ष्मीश्च गृहिणाम् गेहे च गृहदेवता।

सुरभिः सागरे जाता दक्षिणा यज्ञ कामिनी ।।

अदितिर्देव माता त्वम् कमला कमलालया।

स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्य दाने स्वधा स्मृता ।।

त्वं हि विष्णु स्वरूपा च सर्वाधारा वसुंधरा ।

शुद्ध सत्वस्वरूपा त्वं नारायण परायणा ।।

क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा शारदा शुभा ।

परमार्थ प्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा ।।

यया विना जगत्सर्व भस्मीभूतभसारकं ।

जीवन मृतं च विश्वं च शश्वत् सर्व यया विना ।।

सर्वेषाम् च परा माता सर्व बांधव रूपिणी ।

धर्मार्थ काम मोक्षाणां त्वं च कारण रूपिणी ।।

यथा माता स्तनन्धानं शिशूनां शैशवे सदा ।

तथा त्वां सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपतः ।।

मातृहीन स्तनन्धस्तु स च जीवित दैवतः ।

त्वया हीनो जनः कोऽपि न जीवत्येव निश्चितं ।।

सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके ।

वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि ।।

अहं यावत् त्वया हीनो बंधु हीनश्च भिक्षुकः ।

सर्व संपद्विहीनश्च तावदेव हरिप्रिये ।।

राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि ।

ज्ञानं देहि च धर्म च सर्व सौमाग्यमीप्सितं ।।

प्रभावं च प्रतापं च सर्वाधिकार मेव च ।

जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च ।।


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