Navratri: शिव की शक्ति दुर्गा से होती है और इसी का यादगार पर्व है नवरात्र

शिव की शक्ति दुर्गा से होती है

Update: 2021-04-18 14:29 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क:  भगवद गीता में है, अधर्म की अति की इति और सत्य धर्म की स्थापना के लिए परमेश्वर धरती पर आते हैं। वह संसार में सद्ज्ञान, शांति, सुख, प्रेम, पवित्रता और सद्भावना रूपी आत्मिक धर्म और दैवी संपदा की फिर से स्थापना करते हैं। वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, हिंसा वगैरह आसुरी प्रवृत्तियों का अंत भी करते हैं। युग परिवर्तन का निमित्त महाभारत में उनका पात्र अर्जुन है, तो इस युग में साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा हैं। दानवी वृत्तियों को समाप्त कर मनुष्य और प्रकृति में देवी गुण और संस्कृति की जागृति शिव की शक्ति दुर्गा से होती है। इसी का यादगार पर्व है नवरात्र।

चैत्र मास में नवरात्र के नौ दिन, नौ देवियों की महिमा का गुणगान करने के शुभ अवसर हैं। अंतर्मुखी होकर आत्म अवलोकन और आत्म परिवर्तन करने का भी यह मौका है। नवरात्र असल में महादुर्गा के नौ स्वरूपों के दर्शन, पूजन और गायन का त्योहार मात्र नहीं, इन स्वरूपों में निहित ज्ञान, मानवीय संवेदना, एकता, भाईचारा और सद्भावना को एक सूत्र में पिरोने का आध्यात्मिक उत्सव है। महादेवी दुर्गा साधु प्रवृत्ति वालों के लिए ज्योति स्वरूपा सौम्या हैं। बुरी वृत्ति या आसुरी प्रवृत्ति वालों के लिए ज्वाला स्वरूपा रौद्ररूपा हैं। पुराणों के अनुसार, उन्होंने पवित्रता के बल से अनेक कामांध असुरों का विनाश किया। जैसे योगेश्वर शिव ने योगाग्नि से कामबाण धारी कामदेव को भस्म किया।
इसका भावार्थ यही है कि प्रबल योग तप से माता पार्वती ने सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव को पति परमेश्वर के रूप में पाया। यानी परमात्मा के समस्त दिव्य ज्ञान, गुण और पवित्र शक्तियों की अधिकारी बनीं। सहने, समाने, समेटने, परखने और सामना करने वाली आठ मुख्य शक्तियों का प्रतीक बन अष्ट भुजाधारी दुर्गा कहलाईं। शास्त्रों अनुसार, मां भगवती सर्व प्राणियों में शुद्ध चेतना, स्मृति, बुद्धि, वृत्ति, सद्ज्ञान, शांति, श्रद्धा, शक्ति, दया, क्षमा, तुष्टि आदि की प्रेरक हैं। मनुष्यों में सद्ज्ञान विकसित करने में वह सरस्वती हैं। सुख शांति, संतोष, समृद्धि देने वाली लक्ष्मी हैं। आसुरी वृत्ति या दुर्गुणों का संहार करने वाली दुर्गा और काली हैं।
नवरात्र पर मां भवानी की कृपा पाने के लिए उनके बाह्य स्वरूपों का दर्शन, महिमा या उपासना पर्याप्त नहीं, उनके सत्य स्वरूपों का दर्शन ज्ञान भी जरूरी है। उन स्वरूपों में रचे बचे महान ज्ञान, गुण और अष्ट शक्तियों को धारण करना आवश्यक है। यही देवी शक्तियों का सच्चा आह्वान या उनकी उपासना है। मन में देवी गुण जागरण करने का यह अवसर है। पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ उन देवी गुणों को आत्मसात करना ही देवी कृपा का सुखद फल पाना है।
सिर्फ त्योहार के नौ दिन नहीं, बल्कि हर दिन देवी मां के पावन उत्सव का व्रत लेना है। प्रतिदिन ही देवी शक्तियों की सिमरन से उमंग उत्साह में रहना है। खान-पान को सदा शुद्ध और शाकाहारी रखें, उससे तन दुरुस्त रहेगा। दृष्टि, वृत्ति, बोल और व्यवहार को सात्विक, शीतल, शालीन और सुखदाई बनाएं। इससे संबंधों में मधुरता आएगी। तो आएं, इस नवरात्र सुख शांति की जननी से श्रेष्ठ गुण और पवित्रता का व्रत लें। मन-वचन-कर्म से पवित्र रहकर अपना और औरों का जीवन सुख शांतिमय व वैभवशाली बनाएं।

ब्रह्मा कुमारी शुक्ला,

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