नवरात्रि व्रत कन्या पूजन के बिना अधूरा है, जाने कन्याओं के साथ बालक को बैठाने की वजह
नवरात्रि के व्रत का समापन अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन से किया जाता है. मान्यता है कि माता रानी कन्या पूजन से जितना प्रसन्न होती हैं, इतनी प्रसन्नता उन्हें हवन और दान से भी नहीं होती. यहां जानें कन्या पूजन का महत्व और नियम.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नवरात्रि का समापन होने को है. 14 अक्टूबर को नवमी तिथि है. इस दिन माता के पूजन, हवन आदि के बाद कन्या पूजन किया जाएगा. इसके बाद नौ दिनों तक मातारानी का व्रत रहने वाले भक्त अपना उपवास खोलेंगे. वैसे तो नवरात्रि में कन्या पूजन किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन अष्टमी और नवमी के दिन इसे करना ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है.
शास्त्रों में कन्या पूजन को विशेष महत्व दिया गया है. मान्यता है कि कन्या पूजन के बगैर नवरात्रि का व्रत पूरा नहीं होता. कन्या पूजन के दौरान 9 कन्याओं को माता के नौ स्वरूप मानकर पूजा की जाती है, उनके साथ ही एक बालक को भी भोज कराया जाता है. यहां जानिए कन्या पूजन के नियम और कन्याओं के साथ बालक को बैठाने की वजह.
2 से 10 वर्ष की कन्याओं को कराएं भोज
कन्या पूजन के लिए 2 से 10 साल तक की कन्याओं को श्रेष्ठ माना गया है. 9 कन्याओं को भोजन कराना सर्वश्रेष्ठ होता है. लेकिन आप चाहें तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं की संख्या घटा या बढ़ा भी सकते हैं. इन कन्याओं को उम्र के हिसाब से अलग अलग मां का रूप माना जाता है. दो वर्ष की कन्या को कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या को कल्याणी, पांच साल की कन्या को रोहिणी, छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चंडिका, आठ साल की कन्या को शाम्भवी, नौ साल की कन्या को दुर्गा और 10 साल की कन्या को सुभद्रा का रूप मानकर पूजा जाता है.
इसलिए बैठाया जाता है बालक
देवी पुराण में बताया गया है कि कन्या भोज से मातारानी जितना प्रसन्न होती हैं, उतना वो हवन और दान से भी प्रसन्न नहीं होतीं. इसलिए कन्या पूजन और भोज पूरी श्रद्धा के साथ करवाएं. आमतौर पर नौ कन्याओं के एक साथ एक छोटे बालक को भी कन्याओं के साथ भोजन कराने का चलन है. दरअसल इस बालक को भैरव बाबा का रूप माना जाता है. इन्हें लांगुर कहा जाता है. कहा जाता है कि कन्याओं के साथ लांगुर को भी भोजन कराने के बाद ही कन्या पूजन पूरी तरह से सफल होता है.
इस तरह करना चाहिए कन्या पूजन
सुबह उठकर खीर, पूड़ी, हलवा, चने आदि बना लें. माता रानी को इसका भोग लगाएं. इसके बाद कन्याओं और लांगुर को बुलाकर उनके पैर साफ पानी से धुलवाएं और उन्हें एक स्वच्छ आसन पर बैठाएं. इसके बाद ससम्मान कन्याओं और लांगुर को भोजन करवाएं. फिर माथे पर रोली से सभी का तिलक करें और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा दें. इसके बाद सभी के चरण स्पर्श करें. इस तरह से कन्या भोजन कराने से माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्त को आशीर्वाद प्रदान करती हैं.