हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन का विशेष महत्व होता है और आज यानि 22 नवंबर को मासिक शिवरात्रि मनाई जा रही है. जो कि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन आती है. इस दिन भगवान शिव उनके पूरे परिवार का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. मासिक शिवरात्रि की पूजा व व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं और परिवार में हमेशा प्यार व एकता बनी रहती है. अगर आप इस दिन व्रत कर रहे हैं तो मासिक शिवरात्रि व्रत कथा अवश्य पढ़ें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्रत व पूजा बिना कथा के अधूरा माना जाता है.
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा
शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था. जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था. वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. साहूकार के घर पूजा हो रही थी तो शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी.
शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया. अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया. जब अंधेरा गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी. वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा.
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला. पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए. एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची.
शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ और शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना.'
शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई. प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया.
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली. शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया. तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं. कामातुर विरहिणी हूं. अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं. मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी.'
शिकारी ने उसे भी जाने दिया. दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका. वह चिंता में पड़ गया. रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था. इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई. तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली. शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था. उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई. वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, 'हे शिकारी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी. इस समय मुझे मत मारो.
शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं. इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं. मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे. उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी. हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं.
हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था. पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया. शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा.
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े. मैं उन हिरणियों का पति हूं. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा.
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी. अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं.'
शिकारी ने उसे भी जाने दिया. इस प्रकार प्रात: हो आई. उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई. पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला. शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया. उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया.
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके., किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया.
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई. जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए. शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए.