जरूर पढ़े भगवान दत्तात्रेय का चमत्कारिक मंत्र

29 दिसंबर यानि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष, दिन मंगलवार को दत्तात्रेय जयंती का पर्व मनाया जाएगा

Update: 2020-12-27 13:34 GMT

जनता से रिश्ता  वेबडेस्क | 29 दिसंबर यानि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष, दिन मंगलवार को दत्तात्रेय जयंती का पर्व मनाया जाएगा। बता दें प्रत्येक वर्ष ये पर्व मार्गशीर्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप हैं। जिनके बारे में मान्यता ये है कि इन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। कहा जाता है इन्हीं के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। इनके प्रमुख मंदिरों की बाचत करें तो कहा जाता है दक्षिण भारत में इनके कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। ज्योतिष शास्त्री बताते हैं कि दत्तात्रेय जयंती के दिन इनकी विधि वत पूजा करने का अधिक महत्व है। इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं धार्मिक शास्त्रों में दिए गए कुछ खास मंत्रों के बारे में जिनका जप करने से ुआपको अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकता है।

वैसे को कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की आराधना कभी भी की जा सकती, परंतु खासतौर पर अमावस्या और पूर्णिमा तिथि के दिन इनकी पूजा करना अधिक लाभकारी माना जाता है। ज्योतिषी बताते हैं कि जिस व्यक्ति को अपने जीवन में पितृ दोष के कारण परेशानियां आ रही हों तो उन्हें निम्न मंत्रों का जप ज़रूर करना चाहिए।
विशेष तौर पर साल भर की सभी पूर्णिमा के अलावा 'मार्गशीर्ष पूर्णिमा' यानी श्री दत्तात्रेय भगवान की जयंती के दिन उनके दो पवित्र महाशक्तिशाली मंत्र 'श्री दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा' तथा 'श्री गुरुदेव दत्त' का नाम की माला फेरने से या निरंतर इन नामों का जाप करने से पितृ दोष दूर होकर जीवन की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती है तथा जीवन में उन्नति के नए मार्ग खुद ही खुलने लगते हैं। इसके साथ निम्न अन्य दत्त मंत्रों का जाप जीवन में बहुत ही लाभदायी और चमत्कारिक माने गए हैं।

भगवान दत्तात्रेय के चमत्कारिक मंत्र -
मंत्र- ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:
दत्त गायत्री मंत्र -
मंत्र- ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत्त: प्रचोदयात
मंत्र-
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा।

मानसिक रूप से जाप करने का मंत्र -
मंत्र- ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां।


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