Motivational story: जब चींटी ने सिखाया आलसी कछुए को काम करने का ये महत्व, जानिए यह प्रेरक कथा
हम सब जब किसी काम में टालमटोल करते हैं, तो घर के बड़े लोग कहते हैं कि आलसी मत बनो।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हम सब जब किसी काम में टालमटोल करते हैं, तो घर के बड़े लोग कहते हैं कि आलसी मत बनो। आलस्य से अपना ही काम खराब होता है। कर्म करने का अपना ही महत्व है। कर्मठता के लिए चींटी से बेहतर उदाहरण कोई और नहीं मिल सकता है। वह निरंतर अपने काम में लगी होती है। उससे हम प्ररेणा ले सकते हैं। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको कर्म की प्रधानता को लेकर चींटी और कछुआ की एक प्रेरक कहानी बताने जा रहा हैं। इसे पढ़कर आप भी लाभ उठाएं।
एक समय की बात है। एक कछुआ और चींटी साथ में रहते थे। चींटी हर समय काम करती रहती थी। कभी वह अपने बिल की व्यवस्था कर रही है, तो कभी राशन-पानी लाने का इंतजाम कर रही है। चींटी आस पास की वस्तुओं से अपने जरूरत का सामान एकत्र कर लेती थी। वहीं, उसका पड़ोसी आलसी कछुआ उसे काम करते हुए देखता रहता था। वह बहुत आलसी था। वह हमेशा आराम करता रहता था। उसे भविष्य की चिंता नहीं थी।
एक दिन चींटी अपने परिवार के लिए खाना लेने बाहर गई हुई थी। उसे आने में देर हो गई। जब वह लौटकर आई, तो उसने देखा कि कछुआ उसके बिल के ऊपर पत्थर बना बैठा हुआ है। वह अपनी खोल में सिर तथा पैर समेटकर अराम कर रहा था। चींटी ने उसके खोल पर दस्तक दी, तो कछुए ने खोल से बाहर मुंह निकाला। फिर चिढ़कर बोला- क्या है? चींटी बोली- यहां मेरा घर है, यहां से हट जाओ। कछुआ बोला- देखती नहीं, मैं आराम कर रहा हूं। मुझे यहां से कोई नहीं हटा सकता। जाओ, मेरी तरह जाकर आराम करो।
चींटी ने कहा- क्या तुम्हें अपने आलस्य में सुख मिलता है? कछुए ने कहा- मैं क्या, जो भी मेरी तरह अपने हाथ-पांव सभी कामों से खींचकर अपने में लीन हो जाता है, वही सुखी है। यह कहकर कछुआ फिर अपनी खोल के भीतर समा गया। चींटी तो मेहनती थी। उसने कछुए के पास से बिल बनाया और जमीन के भीतर-भीतर अपने बिल में चली गई।
कुछ देर बाद चीटियां संगठित होकर कछुए के नीचे पहुंच गईं और उसे काटने लगीं। आखिरकार चींटियों के प्रहार से बचने के लिए कछुए को आलस्य त्याग कर वहां से हटना ही पड़ा। चींटी आकर बोली- अब बताओ, तुम्हें सुख किसमें मिला? चींटियों से कटते रहने में या अपने हाथ-पांव हिलाकर वहां से हटने में? चींटियों के हमले से परेशान होकर आलसी कछुआ वहां से भाग गया।
कथा सार: संकट आने पर हम काम करें, इससे अच्छा है कि काम करने की आदत डाल लें, जिसमें असली सुख है।