कुशग्रहणी अमावस्या पर जाने को एकत्रित करने की विधि और महत्व

भाद्रपद की अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से जाना जाता है।

Update: 2021-09-07 02:59 GMT

 भाद्रपद की अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पंचांग गणना और धर्माचार्यों के मत के अनुसार पिठोरी अमावस्या इस साल 07 सितंबर, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। कुशग्रहणी अमावस्या होने के कारण इस दिन कुशा एकत्रित करने का विधान है। इस दिन नदी और पोखर के किनारे निकले कुशा को एकत्रित किया जाता है तथा आने वाले दिनों और पितृ पक्ष में इसका प्रयोग पूजन और तर्पण आदि कार्यों में किया जाता है। आइए जानते हैं कुशग्रहणी अमावस्या के विधान और महात्म के बारे में....

1-सनातन परंपरा में कुशा बहुत महत्व है, किसी प्रकार के पूजन और तर्पण आदि में कुशा को पवित्री के रूप में उगंलियों में धारण किया जाता है। स्नान दान के समय में भी कुशा को हाथ में लेकर संकल्प करने की परंपरा है।
2- कुशग्रहणी अमावस्या पर नाम के अनुरूप कुशा एकत्रित करने की परंपरा है। इस दिन एकत्रित की गई कुशा अति पवित्र और पुण्य फलदायी मनी जाती है।
3- कुशा के बने हुए आसन पर बैठ कर जप और तप करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से जप और तप पूर्ण फलदायी होता है।
4- कुशा को उखाड़ते समय ध्यान रखें कि कुशा को ऐसे स्थान से ही उखाड़े जो साफ-सुथरा हो और अपना मुहं उत्तर या पूर्व की दिशा में रखें।
5- कुशा निकालने के लिए लोहे का प्रयोग न करें, लकड़ी से ढीली की हुई कुशा को एक बार में निकाल लेना चाहिए।
6- खण्डित या टूटी-फूटी कुशा का प्रयोग पूजा में नहीं किया जाता है, इसलिए ध्यान दे कि ऐसी कुशा एकत्रित न करें।
7- कुशा उखाड़ते समय ऊँ के उच्चारण के बाद 'विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिनिसर्जन। नुद सर्वाणि पापानि दर्भ! स्वस्तिकरो भव॥' मंत्र का उच्चारण करना चाहिए, और अंत में 'हुं फ़ट्' कहें।


Tags:    

Similar News

-->