लंकापति के पैरों में गिर पड़ी थीं मंदोदरी, पर भी नहीं माने थे अहंकारी रावण
प्रभु श्री राम और रावण का युद्ध होने से पहले लंकापति रावण को उसके परिजनों ने खूब समझाया पर नहीं माने रावण
रावण ने जैसे ही यह समाचार सुना कि विशाल समुद्र पर पुल बनाने के बाद श्री राम रीछ और वानरों की सेना लेकर लंका में समुद्र तट पर आकर डेरा जमा चुके हैं तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ. यही सूचना राजमहल में रानी मंदोदरी के पास पहुंची तो उन्होंने रावण को अपने महल में बुलाकर आसन पर बैठा कर पूरे सम्मान के साथ आग्रह किया, 'हे नाथ आप क्रोध न करिए और सीता को वापस कर दीजिए.'
बैर उसी से करें जिससे जीत सकें
मंदोदरी ने अपने पति रावण से कहा बैर उसी से करना चाहिए जिससे बुद्धि और बल में जीता जा सके. आप में और श्री राम में वही अंतर है जैसा जुगनू और सूर्य में. जिन्होंने विष्णु रूप में मधु और कैटभ जैसे दैत्यों को, वराह और नरसिंह अवतार में दिति के पुत्रों को हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप का संहार किया. वामन रूप में बाली को बांधा और परशुराम के रूप में सहस्त्रबाहु को मारा. वे ही भगवान पृथ्वी का भार हरण करने के लिए राम रूप में अवतीर्ण हुए हैं.
मंदोदरी ने मांगी थी सुहाग की भीख
जब रावण नहीं माना तो मंदोदरी ने अपने पति लंकाधिपति रावण को समझाया कि राम से युद्ध मत कीजिए क्योंकि उनके हाथ में काल, कर्म और जीव सभी हैं. श्री राम जी की शरण में जा कर जानकी जी को सौंप दीजिए और आप अपने पुत्र को राज्य देकर वन में जाकर श्री रघुनाथ जी का भजन करिए. श्री रघुनाथ जी तो दीनों पर दया करने वाले हैं.
आपको जो कुछ करना चाहिए था वह सब आप कर चुके हैं, आपने देवता, राक्षस, तथा चर अचर सभी को जीत लिया है. संत जन भी ऐसा ही कहते हैं कि चौथे पड़ाव यानी कि बुढ़ापे में राजा को राजपाट सब छोड़ कर वन में चले जाना चाहिए. वन में चल कर आप उनका भजन करिए जो सृष्टि को बनाने वाले, पालने वाले और संहार करने वाले हैं. मंदोदरी ने यहां तक कहा कि यदि आपने मेरा कहा मान लिया तो आपकी यश कीर्ति तीनों लोकों में फैल जाएगी. इतना कह कर मंदोदरी नेत्रों में आंसू भर कर रावण के पैरों पर गिर पड़ी और बोली, 'हे नाथ आप श्री रघुनाथ का भजन करें जिससे उसका (मंदोदरी) का सुहाग बना रहे.'