भगवान श्री कृष्ण का घर, 5,106,556 बार देखा गया ये वीडियो

यशोदा मैया की रसोई।

Update: 2022-04-12 11:20 GMT

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नई दिल्ली: हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है देखने के बाद सोशल मीडिया पर यूजर्स रिएक्शन देते नहीं थक रहे हैं अब तक वीडियो को 5,106,556 बार देखा गया है।

नंदगांव के बारे में जानें खास बातें
नंदगांव की लट्ठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए लाखों लोग देश-विदेश से यहां पहुंचते हैं। लट्ठमार होली पहले बरसाने में खेली जाती है और उसके बाद नंदगांव में खेली जाती है। नंदगांव वही जगह है, जहां भगवान कृष्ण रहते थे और उनके पालक पिता नंद बाबा से संबंध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन गया है। नंदगांव की केवल होली ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि यहां कई ऐसे तीर्थस्थल हैं, जो आज भी कृष्ण से संबंध रखते हैं। आइए जानते हैं नंदगांव के बारे में खास बातें…
नंदबाबा और माता यशोदा पहले गोकुल में रहते थे। बचपन में भगवान कृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई राक्षस गोकुल भेजे। इस भयभीत होकर नंदरायजी और माता यशोदा ने अपने परिवार और गौ, गोप और गोपियों के साथ गोकुल छोड़ दिया और कुछ समय के लिए छटीकरा के आसपास के इलाकों में रहे और फिर नंदगांव में चले गए। नंदगांव का यह गांव नंदीश्वर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसी पहाड़ी की चोटी पर नंदरायजी ने अपना महल बनाया और सभी चरवाहों ने पहाड़ी के आस-पास अपने घर बनाए। नंदराय द्वारा बसाए जाने के कारण इस गांव का नाम नंदगांव पड़ा।
नंद भवन को नंदबाबा की हवेली भी कहा जाता है। इस भवन में भगवान कृष्ण की काले रंग के ग्रेनाइट में उत्कीर्ण प्रतिमा है। उन्हीं के साथ नंदबाबा, यशोदा, बलराम और उनकी माता रोहिणी की मूर्तियां भी हैं।
यशोदा कुंड
नंद भवन के पास एक कुंड स्थित है, जिसे यशोदा कुंड के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि माता यशोदा यहां प्रतिदिन स्नान करती थीं। कभी–कभी कृष्ण और बलराम को भी साथ लाती थीं। कुंड तट पर नरसिंह जी का मंदिर है। यशोदा कुंड के पास ही निर्जन स्थल में एक प्राचीन गुफा भी है। जहां अनेक संत महानुभावों ने साधनाकर भगवद प्राप्ति की है।

वीडियो क्रेडिट- Braj Darpan

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माता यशोदा की अनसुनी कथा
पौराणिक ग्रंथों में यशोदा को नंद की पत्नी कहा गया है। भागवत पुराण में यह कहा गया है देवकी के पुत्र भगवान श्री कृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ। कंस से रक्षा करने के लिए जब वासुदेव जन्म के बाद आधी रात में ही उन्हें यशोदा के घर गोकुल में छोड़ आए तो उनका पालन पोषण यशोदा ने किया।
भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में बालक कृष्ण की लीलाओं के अनेक वर्णन मिलते हैं। जिनमें यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन, माखनचोरी और उसके आरोप में ओखल से बांध देने की घटनाओं का सूरदास ने सजीव वर्णन किया है। यशोदा ने बलराम के पालन पोषण की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे। उनकी एक पुत्री का भी वर्णन मिलता है जिसका नाम एकांगा था।
वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने ब्रह्माजी से यह प्रार्थना की - 'देव! जब हम पृथ्वी पर जन्म लें तो भगवान श्री कृष्ण में हमारी अविचल भक्ति हो।' ब्रह्माजी ने 'तथास्तु' कहकर उन्हें वर दिया। इसी वर के प्रभाव से ब्रजमंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से धरा का जन्म यशोदा के रूप में हुआ। और उनका विवाह नंद से हुआ। नंद पूर्व जन्म के द्रोण नामक वसु थे। भगवान श्री कृष्ण इन्हीं नंद-यशोदा के पुत्र बने।
पुत्र जन्म :- श्री यशोदा जी चुपचाप शांत होकर सोई थीं। रोहिणी जी की आंखें भी बंद थीं। जब वसुदेव ने यशोदा की पुत्री को उठाकर कान्हा को यशोदा के पास सुलाया तो अचानक सूतिका गृह अभिनव प्रकाश से भर गया। सर्वप्रथम रोहिणी माता की आंख खुली। वे जान गई कि यशोदा ने जन्म दिया है।
रोहिणी जी दासियों से बोल उठीं- 'अरी! तुम सब क्या देखती ही रहोगी? कोई दौड़कर नंद को सूचना दे दो।' फिर क्या था, दूसरे ही क्षण सूतिकागार आनंद और खुशियों के कोलाहल में डूब गया। एक नंद को सूचना देने के लिए दौड़ी। एक दाई को बुलाने के लिए गई। एक शहनाई वाले के यहां गई। चारों ओर आनंद का साम्राज्य छा गया।
विधिवत जातकर्म संस्कार संपन्न हुआ। नंद ने इतना दान दिया कि याचकों को और कहीं मांगने की आवश्यकता ही समाप्त हो गई। संपूर्ण ब्रज ही मानो प्रेमानंद में डूब गया। माता यशोदा बड़ी ललक से हाथ बढ़ाती हैं और अपने हृदयधन को उठा लेती हैं तथा शिशु के अधरों को खोलकर अपना स्तन उसके मुख में देती हैं। भगवान शिशुरूप में मां के इस वात्सल्य का बड़े ही प्रेम से पान करने लगते हैं।
कंस के द्वारा भेजी हुई पूतना अपने स्तनों में कालकूट विष लगाकर गोपी-वेश में यशोदा नंदन श्री कृष्ण को मारने के लिए आई। उसने अपना स्तन श्री कृष्ण के मुख में दे दिया। श्री कृष्ण दूध के साथ उसके प्राणों को भी पी गए। शरीर छोड़ते समय श्री कृष्ण को लेकर पूतना मथुरा की ओर दौड़ी। उस समय यशोदा के प्राण भी श्री कृष्ण के साथ चले गए। उनके जीवन में चेतना का संचार तब हुआ, जब गोप-सुंदरियों ने श्री कृष्ण को लाकर उनकी गोद में डाल दिया।
शकटासुर का अंत :- यशोदानंदन श्री कृष्ण क्रमश: बढ़ने लगे। मैया का आनंद भी उसी क्रम में बढ़ रहा था। जननी का प्यार पाकर श्री कृष्णचंद्र इक्यासी दिनों के हो गए। मैया आज अपने सलोने श्री कृष्ण को नीचे पालने में सुला आई थीं। कंस-प्रेरित उत्कच नामक दैत्य आया और शकट में प्रविष्ट हो गया। वह शकट को गिराकर श्री कृष्ण को पीस डालना चाहता था। इसके पूर्व ही श्री कृष्ण ने शकट को उलट दिया और शकटासुर का अंत हो गया।
कृष्ण का मथुरा जाना :- भगवान श्री कृष्ण ने माखन लीला, ऊखल बंधन, कालिया उद्धार, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख प्रदान किया। इस प्रकार ग्यारह वर्ष छ: महीने तक माता यशोदा का महल श्री कृष्ण की किलकारियों से गूंजता रहा। आखिर श्री कृष्ण को मथुरा पुरी ले जाने के लिए अक्रूर आ ही गए। अक्रूर ने आकर यशोदा के हृदय पर मानो अत्यंत क्रूर वज्र का प्रहार किया। पूरी रात श्री नंद जी श्री यशोदा को समझाते रहे, पर किसी भी कीमत पर वे अपने प्राणप्रिय पुत्र को कंस की रंगशाला में भेजने के लिए तैयार नहीं हो रही थीं।
आखिर योगमाया ने अपनी माया का प्रभाव फैलाया। यशोदा जी ने फिर भी अनुमति नहीं दी, केवल विरोध छोड़कर वे अपने आंसुओं से पृथ्वी को भिगोने लगीं। श्री कृष्ण चले गए और यशोदा विक्षिप्त-सी हो गईं उनका हृदय तो तब शीतल हुआ, जब वे कुरुक्षेत्र में श्री कृष्ण से मिलीं। राम-श्याम को पुन: अपनी गोद में बिठाकर माता यशोदा ने नवजीवन पाया। अपनी लीला समेटने से पहले ही भगवान ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया।

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