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एक बार एक मकड़ी ने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया

Update: 2021-02-14 06:51 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक बार एक मकड़ी ने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा कि इस जाले मे खूब कीड़े-मकौड़े और मक्खियां फसेंगी और मैं उसे आहार बनाउंगी. उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुनकर तैयार हो गया. ये देखकर मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हंस रही थी.

मकड़ी को गुस्सा आ गया और वो बिल्ली से बोली, हंस क्यों रही हो ? बिल्ली ने जवाब दिया, ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहां कौन आएगा तेरे जाले में. मैं हंसू नहीं तो क्या करूं.

ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिए बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. फिर एक खिड़की में जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर तक वो जाला बुनती रही, तभी एक चिड़िया आई और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली, अरे मकड़ी, तू भी कितनी बेवकूफ है.

मकड़ी ने पूछा क्यों ? चिड़िया उसे समझाने लगी, अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहां तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जाएगी. मकड़ी को चिड़िया की बात भी ठीक लगी और वो उस जाले को अधूरा छोड़कर नई जगह तलाशने लगी. समय काफी बीत चुका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी.

अब उसे एक अलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी में अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था कि तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरी नजरों से देख रहा था. मकड़ी ने कारण पूछा तो

काक्रोच बोला, अरे यहां कहां जाला बुनने चली आई हो ये तो बेकार की अलमारी है. अभी यहां है, कुछ दिनों बाद बेच दिया जाएगा तो तुम्हारी मेहनत बेकार हो जाएगी.

काक्रोच की बात सुनकर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा. इतने प्रयासों के बाद मकड़ी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नहीं बची थी. भूख की वजह से वो बेहाल थी. जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया.

चींटी बोली, मैं बहुत देर से तुम्हें देख रही थी. तुम बार-बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देतीं थीं. तुम्हें खुद की काबिलियत पर यकीन ही नहीं था इसलिए अब तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है कि तुम कुछ भी करने लायक नहीं हो.

यही हम सबके साथ भी होता है, कई बार हम कुछ काम शुरू तो बहुत उत्साह से करते हैं, लेकिन लोगों की बातें सुनकर हमारा उत्साह कम हो जाता है और हम काम को बीच में ही छोड़ देते हैं. हम स्वयं के फैसले पर अडिग नहीं रह पाते और बातों से भ्रमित होकर समय को बर्बाद कर देते हैं. इससे हमारी एनर्जी भी खत्म हो जाती है और हमारे हाथ फिर भी खाली रहते हैं. इसलिए जब भी कोई काम शुरू करें तो उसे पूरे उत्साह के साथ पूरा करें. लोगों की फिजूल बातों की परवाह न करें. खुद पर भरोसा रखें.

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