जानें सकट चौथ के दिन नित्य पूजा के साथ करें कवच स्तोत्र का पाठ
हिन्दू धर्म में चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है।
जनतासेरिश्ता वेबडेस्क | हिन्दू धर्म में चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी चतुर्थी व्रत और विनायक चतुर्थी व्रत रखा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि विनायक चतुर्थी व्रत के दिन भगवान गणेश की उपासना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भक्तों को सुख, समृद्धि, धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन सकत चौथ व्रत रखा जाएगा। यह व्रत दिनांक कल यानी 10 जनवरी 2023 (Sankashti Chaturthi Vrat 2023) के दिन रखा जाएगा। इस दिन पूजा पाठ के साथ-साथ भगवान गणेश के कुछ महत्वपूर्ण कवच स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलेगा। इसलिए सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी के दिन हरिद्रा गणेश कवच स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।हरिद्रा गणेश कवच (Haridra Ganesh Kavach Lyrics in Sanskrit)
ईश्वर उवाचः
शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ।।
अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् ।
सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ।।
ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि ।
सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ।।गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः ।
गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ।।
जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा ।
विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ।।
गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम ।
विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ।।
गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके ।
लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ।।
व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा ।जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ।।
हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः ।
य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ।।
कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ।।
सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।
सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ।।
ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः ।
पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ।।धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।
समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ।।
हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले ।
किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ।।
इति हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ।।