जानें अनंत सूत्र को धारण करने का महत्व और विधि
अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस साल अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर 2021 को पड़ने जा रहा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन परंपरा में भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाली अनंत चतुर्दशी का अत्यंत महत्व है क्योंकि इस पावन तिथि पर भगवान विष्णु के अनंत रूप की विशेष रूप से साधना-आराधना की जाती है. अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस साल अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर 2021 को पड़ने जा रहा है. इस पावन पर्व को लोग अनंत चौदस के नाम से भी जानते हैं. जिसमें भगवान विष्णु की पूजा के बाद उनके प्रसाद स्वरूप 14 गांठ वाले अनंता को बांह में धारण किया जाता है. आइए जानते हैं कि अनंत चौदस के दिन अनंता धारण करने का क्या महत्व है.
14 गांठ वाले अंनत सूत्र का महत्व
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में 14 गांठ वाले अनंत सूत्र की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि 14 गांठ वाला यह पवित्र धागा भगवान विष्णु के बनाए 14 लोकों का प्रतीक होता है, जिसे बांह में प्रसाद स्वरूप बांधने पर जीवन में किसी भी प्रकार का भय या फिर बाधा आने का डर नहीं रह जाता है. भगवान विष्णु अपने साधक की हर प्रकार से रक्षा करते हैं.
अनंत सूत्र की पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी के दिन स्नान-ध्यान के बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा और अनंत चतुर्दशी की कथा का पाठ किया जाता है. इसके बाद साथ ही एक सूती धागे को कुमकुम, हल्दी और केसर से रंगने के बाद उसमें 14 पवित्र गांठें लगाकर अनंता तैयार किया जाता है. अनंता को तैयार करके भगवान विष्णु के मंत्र "अच्युताय नमः अनंताय नमः गोविंदाय नमः'' मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें समर्पित किया जाता है और उसके बाद प्रसाद स्वरूप अपने दाहिनी बांह में धारण किया जाता है. यह अनंत सूत्र सभी प्रकार की बुरी बलाओं और शत्रुओं से रक्षा करने वाला होता है.
अनंत सूत्र को धारण करने का नियम
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु का प्रसाद माने जाने वाले अनंत सूत्र को धारण करने के बाद रात्रि के समय इसे उतार कर रख दिया जाता है और दूसरे दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में इसे विसर्जित कर दिया जाता है. यदि यह क्रिया उस दिन न संभव हो पाती है तो व्यक्ति को उस अनंता को अगले 14 दिनों तक धारण करना पड़ता है. यदि 14 दिनों के बाद भी वह इस क्रिया को संपन्न नहीं कर पाता है तो उसे यह पूरे वर्ष पहनना पड़ता है और अगली अनंत चतुर्दशी तक इसे बांधे रहना पड़ता है.