जानें एकादशी की व्रत कथा और पूजा विधि

हर साल पौष माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी मनाई जाती है

Update: 2021-12-26 16:16 GMT

Safala Ekadashi 2021: हर साल पौष माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी मनाई जाती है। इस प्रकार साल 2021 में सफला एकादशी 30 दिसंबर को है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है। वैष्णव संप्रदाय के लोग एकादशी पर्व को उत्स्व की तरह मनाते हैं। एकादशी व्रत को करने के कई कठोर नियम भी हैं। इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से एकादशी नियमों का पालन कर भगवान विष्णु जी के निमित्त व्रत उपवास करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान की कृपा से शीघ्र पूर्ण होती हैं। शास्त्रों में निहित है कि एकादशी की कथा श्रवण मात्र से व्यक्ति को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। आइए, सफला एकादशी की व्रत कथा और पूजा विधि जानते हैं-

सफला एकादशी की व्रत कथा
किदवंती है कि एक प्राचीन समय में महिष्मान नामक प्रतापी राजा चंपावती राज्य में रहता था। उसका पुत्र बेहद निर्दयी था। प्रजा की भलाई के लिए कोई कार्य नहीं करता था, बल्कि प्रजा पर वह अत्याचार करता रहता था। इससे प्रजा में त्राहिमाम मच गया। यह जान राजा महिष्मान ने अपने पुत्र को नगर से बाहर निकाल दिया। उस समय राजा के पुत्र ने नगर में चोरी करने की सोची और रात्रि के अंधेरे में चोरी करने के उद्देश्य से नगर में घुस गया।
हालांकि, चोरी करने के क्रम में लुंपक पकड़ा गया। तभी नगरवासियों ने लुंपक को पहचान लिया। भीड़ में किसी एक व्यक्ति ने कहा-यह तो राजा महिष्मान के पुत्र हैं। इन्हें छोड़ दें। लुंपक ने क्षमा याचना की। इसके बाद लुंपक किसी तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। पौष माह में कृष्ण पक्ष की दशमी को अति शीत होने के कारण लुंपक मूर्छित हो गया। एकादशी के दिन वह पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का सुमरन करने लगा।
इस दौरान उसने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया। सूर्यास्त के पश्चात लुंपक ने ईश्वर को याद कर फल ग्रहण किया। इस तरह लुंपक ने अनजाने में सफला एकादशी का व्रत कर लिया। इसके पुण्य प्रताप से लुंपक बड़ी जल्दी ठीक हो गया और उसने सभी आसुरी कार्य छोड़ दिया। अतः सफला एकादशी का विशेष महत्व है।
पूजा विधि
दशमी के दिन से ही लहसन, प्याज समेत तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए। अगले दिन एकादशी के दिन प्रातः काल सुबह मुहर्त में उठें और स्नान-ध्यान करें। इसके पश्चात, आमचन कर सर्वप्रथम व्रत संकल्प लें। फिर भगवान् श्री हरि विष्णु की पूजा फल, फूल, पुष्प, धूप, दीप, कपूर-बाती पीले मिष्ठान आदि से करें। दिन भर उपवास रखें और संध्याकाल में आरती अर्चना करने के पश्चात फलाहार करें।


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