शालिग्राम का महत्व, श्रीहरि से जुड़ा है, जान लें 5 रोचक बातें

Update: 2023-07-17 14:04 GMT
धर्म अध्यात्म: अयोध्या में भगवान श्रीराम की मूर्ति बनाने के लिए शालिग्राम की दो बड़ी शिलाएं नेपाल से लाई गई हैं. इन शिलाओं से भगवान श्रीराम के बालस्वरूप की मूर्तियां बनाई जाएंगी. इस वजह से इस समय शालिग्राम चर्चा के केंद्र में है. आपको पता होगा कि तुलसी विवाह के दिन तुलसी का शालिग्राम के साथ विवाह कराया जाता है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है.
क्या है शालिग्राम?
शालिग्राम काले रंग का एक पत्थर है, जिसकी पूजा की जाती है. इसमें भगवान श्रीहरि विष्णु का वास होता है. भगवान विष्णु ने कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम स्वरूप धारण किया था और वृंदा उस​ तिथि को तुलसी के रूप में उत्पन्न हुई थी. शालिग्राम को भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माना जाता है. शालिग्राम नेपाल के गंडकी नदी में पाया जाता है.
शालिग्राम पूजा का महत्व
1. विष्णु पुराण के अनुसार, जिस घर में शालिग्राम की पूजा होती है, वह तीर्थ के समान माना जाता है.
2. देवउठनी एकादशी के दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराने से दांपत्य जीवन मधुर होता है. अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
3. शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराने से विवाह में होने वाली देरी खत्म होती है. जल्द विवाह का योग बनता है.
4. शालिग्राम की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
शालिग्राम की कथा
दैत्यराज जलंधर और भगवान शिव में भयंकर युद्ध हो रहा था. लेकिन जलंधर का अंत नहीं हो रहा था. तब देवताओं को पता चला कि उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म के पुण्य फल से जलंधर को शक्ति मिल रही थी. तब भगवान विष्णु जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास चले गए. इससे वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया. युद्ध में जलंधर मारा गया.
वृंदा विष्णु भक्त थी, लेकिन जब उसे पता चला कि भगवान विष्णु ने ही उससे छल किया है तो उसने श्रीहरि को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया और स्वयं के जीवन को समाप्त कर लिया. तब भगवान ने उसके श्राप को स्वीकार कर लिया और वे शालिग्राम बन गए. उन्होंने वृंदा को पौधे के रुप में छाया देने का आशीर्वाद दिया, जिसके फलस्वरूप वृंदा की तुलसी के पौधे के रूप में उत्पत्ति हुई.
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