जानिए महाभारत का ये योद्धा क्यों भटक रहा है हजार वर्षों से

यहां उस इंसान की कहानी बता रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है

Update: 2021-04-18 08:27 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क यहां उस इंसान की कहानी बता रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि वो धरती पर पांच हजार से छ: हजार वर्षों तक जीवित रहेगा. कुछ लोग मानते हैं कि वो तीन हजार वर्षो तक धरती पर अलग-अलग इंसानो का रूप लेकर यहां से वहां भटकता रहेगा. बहुत से लोगों का ऐसा भी माना है कि ये जीवित है किसी एक धर्मयुद्ध के लिए. अलग-अलग लोगों की अलग-अलग मान्यता है….ये वो इंसान है जो महाभारत काल से जीवित है और आज भी लोगों को दिखाई देते हैं.

महाभारत काल से लेकर आज तक ये योद्धा धरती के अलग-अलग स्थानों पर भटक रहा है. महाभारत युद्ध में ऐसी क्या गलती की थी इस योद्धा ने जिसको इतना बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा रहा है. महाभारत में तो बड़े-बड़े छल हुए थे, पाप हुए थे तो किसी को तो ऐसी सजा नहीं मिली.
अश्वत्थामा, गुरु द्रोणाचार्य ,कृपाचार्य की बहन कृपी का पुत्र था. द्रोणाचार्य का अपने पुत्र के प्रति बहुत ही ज्यादा स्नेह था. इसी स्नेह की वजह से ही अपनी सोच के विपरीत उन्हें कुरुक्षेत्र युद्ध में अधर्मियों का साथ देना पड़ा. वो कौरवों के समर्थन में पांडवों के विरुद्ध मैदान में उतरे थे.

बात युद्ध के दिनों की है जब भीष्म पितामह की तरह गुरु द्रोणाचार्य भी पांडवों की विजय में सबसे बड़ी बाधा बनते जा रहे थे. श्री कृष्ण जानते थे कि गुरु द्रोण के जीवित रहते पांडवों की विजय असंभव है. इसलिए कृष्ण ने एक योजना बनाई जिसके तहत महाबली भीम ने अश्वत्थामा नाम के एक हाथी का वध कर दिया था. ये हाथी मालव नरेश इंद्र वर्मा का था.
ये झूठी सूचना जब युधिष्ठिर द्वारा द्रोणाचार्य को दी गई तो उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और समाधि लेकर बैठ गए. इस अवसर का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया. अपनी पिता के मृत्यु का समाचार मिलने के बाद द्रोण पुत्र अश्वत्थामा व्यथित हो गया. युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने दुर्योधन को वचन दिया कि वो अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर ही रहेगा. इसके बाद उसने किसी भी तरह पांडवों की हत्या करने की कसम खाई.
युद्ध के अंतिम दिन दुर्योधन के पराजय के बाद अश्वत्थामा ने बचे हुए कौरवों की सेना के साथ मिलकर पांडवों के शिविर पर हमला किया. उस रात उसने पांडवों की सेना के कई योद्धाओं पर हमला किया और मौत के घाट उतार दिया. उसने अपने पिता के हत्यारे धृष्टद्युम्न और उनके भाइयों की हत्या की. साथ ही उसने द्रौपदी के पुत्रों की भी हत्या कर डाली. अपने इस कायराना हरकत के बाद अश्वत्थामा शिविर छोड़कर भाग निकला. द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या के बारे में जब अर्जुन को खबर मिली तो उन्होंने क्रोधित होकर द्रौपदी से कहा कि वो अश्वत्थामा का सर काटकर उसको अर्पित करेगा.
अश्वत्थामा की तलाश में भगवान श्री कृष्ण के साथ अर्जुन निकल पड़े. अर्जुन को देखने के बाद अश्वत्थामा असुरक्षित महसूस करने लगा. उसने अपनी सुरक्षा के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया जो उसे द्रोणाचार्य ने दिया था. गुरु पुत्र होने पर भी उसे केवल ब्रम्हास्त्र छोड़ना आता था, वापस लेना नहीं आता था. तथापि उसने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया. उधर, श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को ब्रम्हास्त्र छोड़ने की सलाह दी.
अश्वत्थामा ने ब्रम्हास्त्र पाण्डवों के नाश के लिए छोड़ा था. अर्जुन के द्वारा ब्रम्हास्त्र को नष्ट करने के बाद अश्वत्थामा को रस्सी में बांधकर द्रौपदी के पास लाया गया. अश्वत्थामा को रस्सी से बंधा देख द्रौपदी का कोमल हृदय पिघल गया और उसने अर्जुन को उन्हें बंधन मुक्त करने को कहा. अश्वत्थामा के कृत के लिए भगवान कृष्ण ने उसे श्राप दिया कि तू पापी लोगों का पाप ढोता हुआ तीन हजार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा. तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध निश्रत होती रहेगी. तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा और मानव और समाज भी तुमसे दुरी बनाकर रहेंगे.
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के श्राप के बाद अश्वत्थामा आज भी अपनी मौत को भटकता रहा, लेकिन उसे मौत नसीब नहीं हुई. ऐसा केवल भविष्य पुराण में ही नहीं बल्कि अलग-अलग पुराणों में भी इसका वर्णन किया गया है, जिसमें ये भी कहा गया है कि जो लोग हजारों वर्षो से जीवित हैं और यहां-वहां भटक रहे हैं, ये सब कल्कि भगवान की सेना में शामिल होकर अधर्म के विरुद्ध लड़ेंगे.


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