जानिए भगवान कृष्ण को शिशुपाल क्यों करना पड़ा वध
शैंपेन का नाम अक्सर जीत के जश्न के साथ जुड़ता है, फिर चाहे वह टीम इंडिया की जीत का जश्न हो या फिर किसी फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड सफलता का, शैंपेन खोलने और उसे एक-दूसरे पर छिड़कने का नजारा आम है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | महाभारत काव्य की रचना वेदव्यास ने की है। इस काव्य ग्रंथ में महाभारतकाल की सभी कथा निहित है। इनमें एक कथा शिशुपाल वध की भी है। आज भी सतसंग और श्रीमद भागवत कथा के दौरान शिशुपाल वध के बारे में विस्तार से बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत समकालीन चेदि जनपद के लोग संतोषी और साधु थे। उस जनपद में उपहास के दौरान भी कोई व्यक्ति झूठ नहीं बोलता था। इस जनपद का स्वामी शिशुपाल था। वहीं, रिश्ते में शिशुपाल वासुदेव की बहन का पुत्र था। इस रिश्ते से शिशुपाल और भगवान श्रीकृष्ण फुफेरे भाई थे। लेकिन क्या आपको पता है कि सौ बार क्षमा कर देने के बावजूद भगवान श्रीकृष्ण को शिशुपाल का वध क्यों करना पड़ा था? आइए जानते हैं-
क्या है कथा
किदवंती है कि वासुदेव की बहन के गर्भ से शिशुपाल का जन्म हुआ था। जब उसका जन्म हुआ, तो वह बेहद विचित्र दिख रहा था। उस समय शिशुपाल की तीन आंखे और चार हाथ थे। यह देख चेदि के राजा दमघोष और उनकी पत्नी चिंतित हो उठे। उस समय उन्होंने शिशुपाल को किसी आश्रम में छोड़ने की बात सोची। तभी आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि अतिरिक्त अंग को देख शिशु का त्याग न करें, बल्कि शिशु को ग्रहण करें। उचित समय में शिशु के अतिरिक्त अंग विलुप्त हो जाएंगे। हालांकि, जिसकी गोद में बैठने से अंग गायब होंगे। उस व्यक्ति के हाथ से शिशु का वध होगा।
कालांतर में शिशु के माता-पिता ने शिशु का पालन-पोषण किया। कालांतर में एक दिन शिशुपाल आंगन में खेल रहा था। उसी भगवान श्रीकृष्ण की नजर शिशुपाल पड़ी। उस समय शिशु की शरारत को देख भगवान के मन में स्नेह और करुणा जगी। तभी उन्होंने शिशु को गोद में ले लिया। तभी बड़ा चमत्कार हुआ और शिशु की अतिरिक्त आंख और हाथ गायब हो गए। उसी समय शिशु के माता-पिता को आकाशवाणी की याद आई। हाथ जोड़कर भगवान श्रीकृष्ण से शिशु की गलती को क्षमा करने का वचन मांगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-बुआ! शिशु के सौ गलती क्षमा है। आप चिंतित न हो। कालांतर में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी प्रेम प्रसंग में थे। वहीं, शिशुपाल भी रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था। जब भगवान श्रीकृष्ण की शादी रुक्मिणी से हो गई, तो शिशुपाल अपमान समझ श्रीकृष्ण को दुश्मन मानने लगे। आगे चलकर धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा आयोजित राजसूय यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण का मान-सम्मान देखकर शिशुपाल ईष्या करने लगे और भगवान श्रीकृष्ण को अपमानित करने लगे। सौ बार श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को क्षमा दे दी। जब शिशुपाल ने 101 बार भगवान का अपमान किया, तो श्रीकृष्ण जी ने सुदर्शन निकालकर शिशुपाल का वध कर दिया।