जानिए क्यों मनाई जाती है गंगा सप्तमी

स्कंदपुराण के अनुसार बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को जन-जन के हृदय में बसी मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी

Update: 2022-05-06 05:47 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्कंदपुराण के अनुसार बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को जन-जन के हृदय में बसी मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 8 मई रविवार को रवि पुष्य योग में मनाया जाएगा। इस दिन गंगा मैया के स्मरण, पूजन एवं स्नान से धन-सम्पत्ति,सुख और यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का नाश होता है। ज्योतिषीय धारणा के अनुसार इस दिन गंगा पूजन से ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। गंगा पूजन करना मोक्ष प्रदायक,अमोघ फलदायक माना गया है एवं इस दिन किया दान कई जन्मों के पुण्य के रूप में प्राणी को मिलता है।

गंगा ऐसे पहुंची शिव की जटाओं में
गंगोत्पत्ति से जुडी एक कथा पदमपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा-''हे देवी ! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो,मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा''।ब्रह्मा जी के कहने पर मूलप्रकृति-गायत्री ,सरस्वती,लक्ष्मी,उमादेवी,शक्तिबीजा,तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं।इनमें से सातवीं 'पराप्रकृति धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल में धारण कर लिया।राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ,उस समय अपने कमण्डल के जल से ब्रह्माजी ने श्री विष्णु के चरण का पूजन किया।चरण धोते समय श्री विष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा।वहां से भगवान शिव के पास पहुंचकर यह जल गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया।गंगा बहुत काल तक शिव की जटाओं में भ्रमण करती रहीं। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि स्वर्ग नदी गंगा धरती (मृत्युलोक)आकाश (देवलोक)व रसातल (पाताल लोक) को अपनी तीन मूल धाराओं भागीरथी,मंदाकिनी और भोगवती के रूप में अभिसंचित करती हैं।
ऋषि जह्नु के कान से निकली गंगा
नारद पुराण के अनुसार एक बार गंगा जी तीव्र गति से बह रही थी,उस समय ऋषि जह्नु भगवान के ध्यान में लीन थे एवं उनका कमंडल और अन्य सामान भी वहीं पर रखा था । जिस समय गंगा जी जह्नु ऋषि के पास से गुजरी तो वह उनका कमंडल और अन्य सामान भी अपने साथ बहा कर ले गई जब जह्नु ऋृषि की आंख खुली तो अपना सामान न देख वह क्रोधित हो गए। उनका क्रोध इतना ज्यादा था कि अपने गुस्से में वे पूरी गंगा को पी गए। जिसके बाद भागीरथ ऋृषि ने जह्नु ऋृषि से आग्रह किया कि वह गंगा को मुक्त कर दें।जह्नु ऋृषि ने भागीरथ ऋृषि का आग्रह स्वीकार किया और गंगा को अपने कान से बाहर निकाला। जिस समय घटना घटी थी,उस समय वैशाख पक्ष की सप्तमी थी इसलिए इस दिन से गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसे गंगा का दूसरा जन्म भी कहा जाता है।अत: जह्नु ऋषि की कन्या होने की कारण ही गंगाजी 'जाह्नवी' कहलायीं।
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