जानिए क्यों करते हैं होलिका दहन, पढ़ें भक्त प्रह्लाद तथा हिरण्यकश्यप की कथा

होलिका दहन 28 मार्च को है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित

Update: 2021-03-28 01:07 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | होलिका दहन 28 मार्च को है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यताओं के अनुसार, विष्णु भक्त प्रहलाद को जब राक्षस हिरण्यकश्यप की बहन और प्रहलाद की बुआ होलिका आग पर बिठाकर मारने की कोशिश करती है तो वे खुद जल जाती है। इसी के नाम पर होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई थी। होलिका दहन को समाज की बुराई को जलाने के प्रतीक के तौर पर मनाया जा जाता है। आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास से इस कथा के बारे में।

होलिका दहन पौराणिक कथा:
होली के संबंधित में पौराणिक कथा है कि हिरण्यकश्यप नाम का दानव राजा खुद को देवता समझता था और सभी को अपनी पूजा करने को कहता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक भक्त था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर भगवान विष्णु का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है, प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। इस बात को सुनकर अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से भर गया और पुत्र प्रहलाद को कई तरीकों से मरवाने का प्रयास किया लेकिन हर बार प्रभु विष्णु ने उसकी जान बचा ली।
इसके अलावा होली को लेकर राक्षसी ढुंढी, राधा-कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से संबंधित पौराणिक कथाएं हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते है। साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने होली के दिन ही पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, इसी खुशी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
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