जानिए आमलकी एकादशी के दिन क्यों की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा

आंवला एकादशी को बहुत श्रेष्ठ एकादशी माना गया है. कहा जाता है कि आंवले के पेड़ से भगवान विष्णु और महादेव दोनों का संबन्ध है. इस पेड़ की पूजा करने से दोनों की कृपा प्राप्त होती है.

Update: 2022-03-10 03:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. इसे आंवला एकादशी (Amla Ekadashi) भी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ आंवले के पेड़ का पूजन भी किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ महादेव की भी कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है. होली से कुछ दिन पहले पड़ने के कारण इस एकादशी को लोग रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) भी कहते हैं. वैसे तो सभी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित हैं, लेकिन ये एकमात्र ऐसी एकादशी है, जिसका संबन्ध महादेव और माता पार्वती से भी है. इस दिन महादेव के भक्त उन पर जमकर अबीर और गुलाल उड़ाते हैं. इस बार आमलकी एकादशी 14 मार्च को रखी जाएगी. यहां जानिए इस व्रत वाले दिन आंवले के पेड़ की पूजा का क्या महत्व है.

माता लक्ष्मी ने की थी आंवले के पेड़ की पूजा की शुरुआत
कहा जाता है कि आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु और महादेव दोनों का वास होता है. इसकी एक कथा माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है. इस कथा के अनुसार शिव और विष्णु स्वरूप के रूप में आंवले के पेड़ की पूजा सबसे पहले माता लक्ष्मी ने की थी. एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने आईं. यहां आने के बाद उन्हें भगवान विष्णु और महादेव की एकसाथ पूजा करने का मन हुआ. तब उन्हें खयाल आया कि आंवले के पेड़ में तुलसी और बेल दोनों के गुण पाए जाते हैं. तुलसी नारायण को प्रिय है तो बेल महादेव को. इसके बाद माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को विष्णु भगवान और भोलेनाथ का प्रतीक मानकर पूजा की. तब से आंवले के पेड़ को पूज्यनीय माना जाने लगा. आंवला एकादशी के अलावा कार्तिक मास में आंवला नवमी के दिन भी इस पेड़ की पूजा नारायण और शिव के प्रतीक के रूप में की जाती है. मान्यता है कि इससे दोनों की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य आदि किसी चीज की कमी नहीं रहती. इस दिन किया हुआ दान, पूजा, व्रत आदि कार्य का कई गुना अधिक परिणाम मिलता है और अंत में वो व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर करता है.
भगवान विष्णु का अंश है आंवला
आंवले की उत्पत्ति को लेकर भी एक कथा है, जिसे आमतौर पर आंवला एकादशी के दिन पढ़ा जाता है. इस कथा के मुताबिक एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को जानने के लिए परब्रह्म की तपस्या शुरू की. तब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु सामने आ गए. उनको देखते ही ब्रह्मा जी भाव विभोर हो गए और उनकी आंखों से अश्रु गिरने लगे. ब्रह्मा जी के आंसू नारायण के चरणों पर गिर रहे थे. कहा जाता है कि हर आंसू नारायण के चरणों में गिरने के बाद आंवले के पेड़ में तब्दील हो रहा था. जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन एकादशी तिथि थी. तब श्रीहरि ने कहा कि आज से ये वृक्ष और इसका फल मेरा ही स्वरूप माना जाएगा. ये मुझे अत्यंत प्रिय होगा. इस दिन को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाएगा. जो भक्त आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा विधिवत तरीके से करेगा, वो साक्षात मेरी पूजा होगी. उसके सारे पाप कट जाएंगे और वो मोक्ष की ओर अग्रसर होगा.


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