जानिए चाणक्य ने दुनिया में कौन सी 4 बातें सबसे ज्यादा बताई हैं कीमती
चाणक्य नीति, जब भी बुद्धि- विवेक की कोई बात हो तो ये एक ऐसा शब्द है जो हम अक्सर सुनते आए हैं. आचार्य चाणक्य को उनकी नीतियों के लिए ही जाना जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चाणक्य नीति, जब भी बुद्धि- विवेक की कोई बात हो तो ये एक ऐसा शब्द है जो हम अक्सर सुनते आए हैं. आचार्य चाणक्य को उनकी नीतियों के लिए ही जाना जाता है. आचार्य चाणक्य के मुताबिक दुनिया में करने योग्य महज चार चीजें ही है. इन चार के अलावा दुनिया की हर चीज बेकार है.आचार्य चाणक्य के अनुसार चार ऐसी चीजें है, जो दुनिया में सबसे बेशकीमती होती हैं. अगर इसमें से कोई एक चीज भी किसी व्यक्ति को मिल गई तो उसे किसी और चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी. ऐसे में आइए जानते हैं कि जानिए चाणक्य ने दुनिया में किन 4 चीजों को सबसे ज्यादा बेशकीमती बताया है.
1. दान
आचार्य चाणक्य के अनुसार, इस दुनिया में सबसे बड़ा धर्म व कार्य दान है। जरूरतमंदों को किया गया भोजन और पानी का दान ही सबसे बड़ा कार्य है। इसके अलावा दुनिया में कोई और चीज इतनी बेशकीमती नहीं है। जो व्यक्ति भूखे-प्यासे को भोजन और पानी पिलाता है वह ही भगवान का सबसे बड़ा भक्त और पुण्य आत्मा होती है। इसलिए अपने सामर्थ्य के अनुसार सभी को दान करना चाहिए.
2. एकादशी व्रत
आचार्य चाणक्य ने हिन्दू पंचाग की एकादशी तिथि को सबसे पवित्र तिथि मानी है. एकादशी तिथि पर पूजा- व्रत और उपवास रखने पर भागवान विष्णु की असीम कृपा होती है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है. हिंदू धर्म में इस तिथि को भगवान विष्णु की प्रिय माना गया है. साल में कुल 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं.
3. गायत्री मंत्र
शास्त्रों में गायत्री मंत्र को सबसे प्रभावशाली मंत्र माना गया है. चाणक्य ने भी इस मंत्र को दुनिया का सबसे बड़ा और शक्तिशाली मंत्र माना है. माता गायत्री को वेदमाता कहा जाता है, चारों वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है. आचार्य के अनुसार, इस दुनिया में गायत्री मंत्र से बड़ा कोई और दूसरा मंत्र नहीं है.
4. मां का दर्जा सबसे बड़ा
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि, इस दुनिया में जीव के रूप में जन्म लेने वाले सभी के लिए मां का दर्जा सबसे बड़ा है. मां से बड़ा कोई देवता नहीं, न कोई तीर्थ और न ही कोई गुरु. आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो इंसान मां की सेवा करते हैं उन्हें इस दुनिया में किसी तीर्थ की कोई जरुरत नहीं होती. आचार्य चाणक्य ने अपनी इन चार नीतियों पर एक श्लोक भी लिखा है.