जानें कहा हुआ था भगवान बुद्ध का जन्म और उसे जुड़ी कुछ खास बातें

Update: 2022-05-16 06:49 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लुम्बिनी नेपाल में वो जगह है जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था. फिलहाल नेपाल में ये जगह रूपनदेई जिले में है. बौद्ध परंपरा के अनुसार रानी महामायादेवी ने 563 ईसापूर्व सिद्धार्थ गौतम को जन्म दिया था. बाद में ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्हें बौद्ध कहा जाने लगा. चूंकि लुम्बिनी का संबंध बुद्ध के जन्मस्थान के तौर पर है लिहाजा इसका महत्व बहुत ज्यादा है. ये बौद्ध तीर्थस्थल है. यहां दुनियाभर से लोग आते हैं.

लुम्बिनी का मायादेवी मंदिर. लुम्बिनी में कई पुराने मंदिर हैं, जिसमें मायादेवी मंदिर है. साथ ही कई देशों और बौद्ध संगठनों द्वारा बनवाए गए नए बौद्ध मंदिर, स्तूप, स्मारक और मठ भी यहां हैं. कुछ का निर्माण का काम भी चल रहा है. यहां एक इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर और म्युजियम भी है. यहां एक पवित्र तालाब भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि बुद्ध को जन्म देने से पहले उनकी मां ने इसमें स्नान किया था. यहीं जन्म के बाद बुद्ध ने भी पहला स्नान किया.
लुम्बिनी हिमालय की गोद में बसे देश नेपाल के दक्षिण में स्थित है. शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने लुम्बिनी की खुदाई के दौरान सदियों पुराने एक मंदिर और गाँव का पता लगाया है. इस जगह के बारे में पहले से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी. युनेस्को ने बुद्ध के जन्मस्थान को ऐतिहासिक महत्व की वैश्विक धरोहर घोषित कर रखा है.
बुद्ध के समय में लुम्बिनी कपिलवस्तु के पूर्व में थी. ये शाक्य गणतंत्र था. यहां पर सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तम्भ भी है, जो ब्राह्मी लिपि प्राकृत भाषा में है, जिसमें लुम्बिनी के बुद्ध के जन्म स्थान होने की बात लिखी है. कुशीनारा में अपने निधन से पहले, भगवान बुद्ध ने कहा था: "यह वो जगह है जहां तथागत का जन्म हुआ था, ये ऐसा स्थान है जहां आस्था रखने वाले व्यक्ति को जाना और देखना चाहिए. आज दुनिया भर से तीर्थयात्री और आगंतुक लुम्बिनी आते हैं.
यह जगह विश्व में बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में एक है. यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है. बुद्ध की मृत्यु के बाद, लुंबिनी का खूबसूरत बगीचा तीर्थ स्थान में बदल गया. सम्राट अशोक ने 249 ईसा पूर्व में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी की शाही तीर्थयात्रा की थी.
लुम्बिनी का वर्णन चीनी यात्री फाहियान और युवानच्वांग ने भी किया है. फाहियान के अनुसार कपिलवस्तु से 50 मील पूर्व में लुम्बिनी वन युवानच्वांग ने इस स्थान पर उस स्तूप को देखा था, जिसे अशोक ने बनवाया था. शायद हूणों के आक्रमणों के बाद ये स्थान गुमनामी के अंधेरे में समा गया. डॉ. फूहरर ने 1866 ई. में इस स्थान को खोज निकाला. तब से इस स्थान को बौद्ध जगत में पूजनीय स्थल के रूप में मान्यता मिली.
इस इलाके में पुरातात्विक महत्व की कई ऐतिहासिक ध्वंसावशेषों को देखा जा सकता है.लंबे समय से लुम्बिनी को विकसित करने की योजनाएं बनती रही हैं. लेकिन अब भी ऐसा हो नहीं पाया है. यहां कई कई आधी बनी इमारते हैं.


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