जानें कब है कुशोत्पाटिनी अमावस्या?
भाद्रपद माह की अमावस्या 27 अगस्त शनिवार को है. इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या (Kushotipatni Amavasya) या कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं
भाद्रपद माह की अमावस्या 27 अगस्त शनिवार को है. इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या (Kushotipatni Amavasya) या कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं. इस दिन कुश यानि पवित्र घास इकट्ठा की जाती है. कुश का उपयोग पूजा पाठ में किया जाता है. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी कहते हैं कि इसी कुश का उपयोग गृह प्रवेश, शादी, श्राद्ध और अन्य सभी मांगलिक कायों में करते हैं. ग्रंथों के अनुसार, इस भाद्रपद अमावस्या पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए. यदि आप नदी स्नान न पाएं तो घर पर ही बाल्टी के पानी में गंगाजल मिलाकर नहा लें और अपने सभी पितरों की पूजा कर लें. इसके बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दें.
कुश का महत्व
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए. ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं. बताया जाता है कि मंत्र, ब्राह्मण, अग्नि, तुलसी और कुश कभी भी बासी नहीं माने जाते हैं. पूजा में इनका उपयोग बार-बार किया जाता है. धर्मग्रंथों में कुश के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है.
भगवान विष्णु के रोम से बना है कुश
अथर्ववेद के अनुसार, कुश घास का उपयोग करने से क्रोध नियंत्रित करने में सहायता मिलती है.
कुश का उपयोग औषधि के रूप में भी होता है. भगवान विष्णु के रोम से बने होने की वजह से इसे पवित्र माना जाता है.
कुश की उत्पत्ति कथा
मत्स्य पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था और हिरण्याक्ष का वध किया था. फिर से पृथ्वी को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी. उस समय जब भगवान वराह ने अपने शरीर को झटका था, तब उनके शरीर के कुछ रोम धरती पर गिर गए थे. उन्हीं से कुश की उत्पत्ति हुई. इस वजह से कुश पवित्र माने जाते हैं.
कुश और अमृत कलश से जुड़ा प्रसंग
महाभारत में कुश से जुड़ा एक प्रसंग है. एक समय की बात है, जब गरुड़ देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे, तब उन्होंने कुछ देर लिए अमृत कलश को जमीन पर कुश पर रख दिया. इस पर अमृत कलश रखने के कारण यह पवित्र माना जाता है.
कुश से पितर होते हैं तृप्त
महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण करने के लिए कुश का उपयोग किया था. तब से माना जाता है कि जो भी व्यक्ति कुश पहनकर अपने पितरों का श्राद्ध करता है तो उसके पितर देव उससे तृप्त हो जते हैं.
कुश से जुड़े नियम
जिस कुश घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और वो हरा हो, वह कुश देवताओं और पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार, कुश को इस अमावस्या पर सूर्योदय के वक्त लाना चाहिए. यदि आप सूर्योदय के समय इसे न ला पाएं तो उस दिन के अभिजित या विजय मुहूर्त में घर पर लाएं.
नियम है कि सूर्यास्त के बाद कुश को नहीं तोड़ना चाहिए. यदि कुश गंदे स्थान पर उगा है तो उसे न लाएं. कुश से आसन और अंगुठी बनाते हैं. कुश घास से बना आसन अच्छा माना जाता है. कुश आसन पर बैठकर पूजा करने से अधिक पुण्य प्राप्त होता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुश के आसन पर बैठक पूजा करने से शरीर की ऊर्जा जमीन में नहीं जाती है. मांगलिक कार्यों एवं पूजा-पाठ में कुश से अंगुठी बनाएं और उसे दाएं हाथ की रिंग फिंगर में पहनें. फिर पूजा करने से पवित्रता बनी रहती है.