नाग पंचमी विशेष पर जानें नागिन से विवाह करने वाले इन इंसानों की कहानी, हो जायेंगे हैरान

नाग पंचमी के मौके पर यानी आज हम आपको कुछ ऐसी पौराणिक कथाओं के बारे में बताएंगे,

Update: 2021-08-13 15:17 GMT

नाग पंचमी के मौके पर यानी आज हम आपको कुछ ऐसी पौराणिक कथाओं के बारे में बताएंगे, जिसे सुनकर आप चौंक जाएंगे। सनातन धर्म में कई नाग-नागिनों के बारे में बताया गया है, जनिका धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है। ये कथाएं उन इंसानों की हैं, जिन्होंने नागिन से शादी की थी। जरत्कारु, उलूपी, सुलोचना और अहिलवती ये वो नागिन हैं, जिनका विवाह इंसान से हुआ था। आज हम आपको इनके विवाह से संबंधित कथाओं के बारे में बताएंगे…

जरत्कारु ऋषि का नाग कन्या के साथ विवाह
पौराणिक कथा के अनुसार, वासुकी नाग की बहन जरत्कारु का विवाह जरत्कारु ऋषि से हुआ था। जरत्कारु ऋषि ने तपस्या करके अपना शरीर क्षीण कर लिया था, इसलिए उनका नाम जरत्कारु पड़ा। वहीं यह भी संयोग था कि नागराज वासुकी की बहन ने भी तपस्या से अपने शरीर क्षीण कर लिया था इसलिए भी उनका नाम भी जरत्कारु कहलायी। जरत्कारु ऋषि विवाह नहीं करना चाहते थे इसलिए ब्रह्मचर्य धारण करके तपस्या में लीन हो गए थे। उन दिनों राजा परीक्षित का राजत्व काल था। जरत्कारु ऋषि काफी नियमों का पालन करते थे और वे अपने खानदान में इकलौते बचे थे। मुनि वर के पितर इस बात से चिंतित थे और वंश परंपरा के नाश के कारण नरक में गिरते जा रहे थे क्योंकि उनका नाम लेने वाला और कोई नहीं था, जिससे वह पुण्य लोक से नीचे गिर रहे थे। पितरों के दुख देखकर जरत्कारु ने विवाह का निश्चय किया लेकिन अपनी शर्तों पर। उन्होंने कहा कि मैं उस कन्या से विवाह करूंगा, जिसका नाम जरत्कारु होगा और विवाह के बाद उसके भरण-पोषण का भार नहीं उठाउंगा। तब नागराज वासुकी की बहन जरत्कारु मुनि वर से विवाह करने पहुंची। विवाह के बाद एक दिन सायंकाल के समय ऋषि अपनी पत्नी की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। ऋषि पत्नी धर्म संकट में फंस गई थीं लेकिन उन्होंने ऋषि को जगा दिया। इसपर वह नाराज हो गए और छोड़कर चल दिए। तब जरत्कारु ने कहा कि आप आपके और मेरे विवाह का एक प्रयोजन था कि हमारे संयोग से एक पुत्र होगा, जो जनमेजय के सर्प यज्ञ से बचाएगा। अभी तो मेरे गर्भ में कोई संतान है नहीं। तब जरत्कारु ऋषि ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में एक दिव्य संतान है, जो बहुत बड़ा तपस्वी होगा। यह जरत्कारु ऋषि के पुत्र आस्तिक मुनि कहलाए, जिन्होंने जनमेजय के सर्प यज्ञ को रोककर सांपों को बचाया था।
अर्जुन का नाग कन्या उलूपी से विवाह
कौरव्य नाग की पुत्री उलूपी का विवाह पांडव पुत्र अर्जुन से हुआ था। जलपरी नागकन्या उलूपी अर्जुन की चौथी पत्नी थीं। कथा के अनुसार, द्रौपदी के महल में एक साल में केवल एक ही पांडव प्रवेश कर सकता था, अगर कोई आ जाता था तो उसको वनवास जाना पड़ता था। एक दिन युधिष्ठिर के होते हुए अर्जुन द्रौपदी के महल में पहुंच गए, तब उनको वनवास जाना पड़ा। वन-वन भटकते हुए अर्जुन का नागों से युद्ध हो गया और उसमें बड़ी संख्या में नाग मारे गए थे इसलिए नागवंशी अर्जुन से बदला लेना चाहते थे। तब उलूपी को अर्जुन को मारने के लिए भेजा गया था। अर्जुन को देखकर नागकन्या मोहित हो गई और मारने का विचार त्याग कर प्रेम करने लगी। लेकिन अर्जुन ने प्रेम करने के लिए मना कर दिया तब सम्मोहन शक्ति से अर्जुन को बेहोश करके नागलोक ले गईं, जहां उलूपी ने अर्जुन को अपने पिता से मिलवाया और शत्रुता खत्म करने को कहा। उलूपी ने बताया कि अर्जुन को नागों से दुश्मनी नहीं है, उनको केवल एक गलतफहमी हो गई थी। अर्जुन उलूपी की इस बात से प्रभावित हो गए थे और उनसे विवाह कर लिया। कुछ सालों तक अर्जुन नागलोक में रहे, जहां उनका एक इरावन नाम का एक पुत्र हुआ। एक बार मृत्यु प्राप्त हो चुके अर्जुन को नागमणि से उलूपी ने पुनर्जीवित कर दिया था।
मेहनाद का नाग कन्या सुलोचना से विवाह
रावण का पुत्र मेघनाद पराक्रमी योद्धा था, उसे इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता था। एकबार जब मेघनाद सभी लोक पर अपना विजय पताका फैला रहा था, तब वह उस दौरान नागलोक भी पहुंचा था। नागराज वासुकी मेघनाद के पराक्रम को देखकर काफी प्रसन्न हुए। तब उन्होंने अपनी पुत्री सुलोचना का विवाह मेघनाद के साथ कर दिया था। राम-रावण युद्ध के दौरान सुलोचना ने युद्ध में जाने से मेघनाद को काफी रोका था और उनको राम और लक्ष्मण के बारे में भी बताया था लेकिन वह अपना धर्म समझकर युद्ध में शामिल हुए, जहां मेघनाद का वध लक्ष्मण के हाथों हुआ।
घटोत्कच का नाग कन्या अहिलावती से विवाह
महाभारत में भीम और हिडिम्बा का एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम घटोत्कच था। घटोत्कच का विवाह नाग कन्या अहिलावती से हुआ था। घटोत्कच और अहिलावती का एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम बर्बरीक थ। बर्बरीक एक महान योद्धा था। एक लोककथा के अनुसार, अहिलावती नागराज वासुकी की पुत्री थीं और देवी पार्वती ने भगवान शिव को बासी फूल चढ़ाने के लिए उनको शाप भी दिया था।
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