मकर संक्रांति के दिन क्यों किया जाता है जानें कथा और महत्व
सूर्यदेव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करते हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सूर्यदेव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति पड़ती है। इस वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति है। इस दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान-ध्यान करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। वहीं, तिलांजलि और दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगासागर में आस्था की डुबकी लगाते हैं। हालांकि, कोरोना काल में यह संभव नहीं है। अतः घर पर ही गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। आइए, गंगासागर के बारे में सबकुछ जानते हैं
क्या है कथा
सनातन धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि दैविक काल में भगवान श्रीहरि का धरती पर अवतरण हुआ था। उस समय वे कपिल मुनि के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। कालांतर में भगवान गंगासागर के समीप आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे। उन दिनों राजा सगर की प्रसिद्धि तीनों लोकों में थी। सभी राजा सगर के परोपकार और पुण्य कर्मों की महिमा करते थे। यह देख राजा इंद्र बेहद क्रोधित और चिंतित हो उठे। स्वर्ग के राजा इंद्र को लगा कि अगर राजा सगर को नहीं रोका गया, तो वे आगे चलकर स्वर्ग के राजा बन जाएंगे।
यह सोच राजा इंद्र ने राजा सगर द्वारा आयोजित यज्ञ हेतु अश्व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के समीप बांध दिया। जब राजा सगर को अश्व के चोरी होने की सुचना मिली, तो उन्होंने अपने सभी पुत्रों को अश्व ढूंढने का आदेश दिया। जब कपिल मनु के आश्रम के बाहर अश्व बंधा दिखा, तो राजा सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि पर अश्व चुराने का आरोप लगाया। यह सुन कपिल मुनि क्रोधित हो उठे और उन्होंने तत्काल राजा सगर के सभी पुत्रों को भस्म कर पाताल भेज दिया।
जब राजा सगर को यह बात पता चला, तो वे कपिल मुनि के चरणों में गिर पड़े और उनके पुत्रों को क्षमा करने की याचना की। हालांकि, श्राप वापस नहीं लिया जाता है। अतः कपिल मुनि ने उन्हें पुत्रों को मोक्ष हेतु गंगा को धरती पर लाने की सलाह दी। तब राजा भगीरथ ने माता पार्वती की कठिन तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर माता पार्वती गंगा रूप धारण कर धरती पर मकर संक्रांति के दिन अवतिरत हुई। जब राजा सगर के मृत पुत्रों को गंगा का स्पर्श हुआ, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। । अतः गंगासागर में मकर संक्रांति के अवसर पर स्नान-ध्यान का विधान है।