जानिए रत्न धारण करने के नियम
हिंदू धर्म में नवग्रहों और उनसे जुड़े रत्नों का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि नवग्रहों की शुभता को बढ़ाने के लिए और उनकी अशुभता को कम करने के लिए रत्न पहने जाते हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में नवग्रहों और उनसे जुड़े रत्नों का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि नवग्रहों की शुभता को बढ़ाने के लिए और उनकी अशुभता को कम करने के लिए रत्न पहने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि हर ग्रह किसी न किसी रत्न का प्रतिनिधित्व करता है. ऐसे में रत्न धारण करने से व्यक्ति के जीवन में बहुत से सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं, और ग्रहों से संबंधित समस्या का समाधान भी हो सकता है. ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि अलग-अलग रत्नों का प्रभाव अलग-अलग कुंडली के जातकों पर अलग-अलग होता है. कोई भी रत्न धारण करने से पहले रत्नों के जानकार से सलाह ले लेना चाहिए. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल के रहने वाले ज्योतिषी एवं पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
रत्न धारण करने के नियम
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी भी रत्न को कभी भी किसी माह के कृष्ण पक्ष में धारण नहीं करना चाहिए. रत्न को पहनने के लिए किसी भी महीने का शुक्ल पक्ष ही उत्तम माना जाता है. इसके अलावा किसी भी रत्न को पहनने के पूर्व उनको विधि-विधान के अनुसार पूजा करके अभिमंत्रित करने के बाद ही धारण करना चाहिए.
किसी भी रत्न को सिर्फ शुभ मुहूर्त ने पहना ही नहीं जाता, बल्कि रत्न को खरीदते समय भी शुभ मुहूर्त का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए. बाजार से रत्न लेते समय इस बात का पूरा ख्याल रखें कि रत्न में किसी प्रकार का दाग लगा हुआ ना हो और ना ही यह कहीं से चटका या टूटा हो. ज्योतिष के मापदंड के अनुसार ही रत्न को खरीदना चाहिए.
यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक रत्न धारण करना चाह रहा है, तो उसे इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि परस्पर शत्रु राशि वाले रत्नों को एक साथ कभी ना पहनें. इसके अलावा यदि रत्न की अनुकूलता को परखना है तो संबंधित ग्रह के हिसाब से रेशम के वस्त्र में रत्न को लपेट कर उसकी पूजा करने के बाद अपनी बांह में धारण कर लें.
हर रत्न को धारण करने के लिए उससे सम्बंधित धातु भी बहुत विशेष महत्व रखती है. हर रत्न को धारण करने के लिए अलग-अलग धातु होती है. जैसे चांदी में मोती को धारण करना चाहिए और सोने में पुखराज को.