जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कई वर्षों बाद पहली बार कार्तिक मास की पूर्णिमा (और देव दिवाली) को चंद्र ग्रहण का योग बन रहा है। ऐसा होना अपने आप में न केवल एक अनूठी घटना है वरन ज्योतिषियों के अनुसार अत्यधिक महत्वपूर्ण भी है। यह ग्रहण इस वर्ष का अंतिम ग्रहण भी है।
खगोलविदों के अनुसार इससे पहले वर्ष 2012 और वर्ष 1994 में भी ऐसे ही योग बने थे जब दिवाली पर सूर्य ग्रहण और उसके 15 दिन बाद देव दिवाली पर चंद्र ग्रहण हुए थे। इस वर्ष भी हाल ही में दिवाली के दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण हुआ और 8 नवंबर को देव दिवाली के दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा।
अब 18 वर्ष बाद बनेगा ऐसा संयोग
ज्योतिषियों तथा वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा संयोग अब आज से 18 वर्ष पश्चात 2040 में आएगा जब 4 नवंबर को दिवाली के दिन सूर्य ग्रहण होगा और 15 दिन बाद 18 नवंबर को देव दिवाली के दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। हालांकि इन दोनों ही ग्रहणों में सूर्य ग्रहण आंशिक होगा जो भारत में नहीं दिखाई देगा जबकि चंद्र ग्रहण भारत में दिखेगा।
शाम 6.19 बजे होगा ग्रहण समाप्त
ज्योतिषियों के अनुसार चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण से 9 घंटे पहले सुबह 5.38 बजे शुरू होगा और शाम को 6.19 बजे ग्रहण के समाप्त होने के साथ ही समाप्त होगा। इस पूरी अवधि में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य, पूजा-पाठ आदि करना भी निषिद्ध माना गया है। हालांकि इस समय काल के दौरान नाम जप और मंत्र जप किए जा सकते हैं। कई ज्योतिषी इस समय काल में राशियों के हिसाब से दान-पुण्य आदि करने की भी सलाह देते हैं।
ग्रहण काल में किए जाते हैं धार्मिक कर्मकांड
ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि ग्रहण काल में मंत्रों का जप तुरंत फल देता है। ऐसे में विद्वान ज्योतिषियों की सलाह पर बहुत से लोग अपनी कुंडली में अशुभ फल दे रहे ग्रहों की शांति के निमित्त भी मंत्र जप करते हैं। कुछ लोग कालसर्पदोष के निवारण करने हेतु भी ग्रहण काल में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान संपन्न करते हैं और अपने कष्टों से मुक्ति पाते हैं।
बहुत से अन्य ज्योतिषी भी ग्रहण के समय गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र जैसे कई अन्य अनुष्ठान करने का उपाय बताते हैं। कई लोग ग्रहण में भिखारियों को भोजन कराते हैं तथा पशु-पक्षियों को दाना, भोजन आदि देते हैं। इस तरह के उपायों से उनकी आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और उनका दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य जागता है।
न्यूज़ क्रेडिट: news24