जानिए महाभारत के शान्तिपर्व का अर्थ

Update: 2024-06-26 06:22 GMT
शान्तिपर्व महाभारत का १२वाँ पर्व है:- Shanti Parva is the 12th part of Mahabharata:-
शान्तिपर्व में धर्म, दर्शन, राजानीति और अध्यात्म ज्ञान का विशद निरूपण किया गया है।
इसके अन्तर्गत ३ उपपर्व हैं-
राजधर्मानुशासन पर्व Rajadharmanushasana festival
आपद्धर्म पर्व Apaddharma festival
मोक्षधर्म पर्व Mokshadharma festival
इसमें 365 अध्याय हैं। शान्ति पर्व में युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर का शोकाकुल होकर पश्चाताप करना,
श्रीकृष्ण सहित सभी लोगों द्वारा उन्हें समझाना, युधिष्ठिर का नगर प्रवेश और राज्याभिषेक, सबके साथ पितामह भीष्म के पास जाना, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर तथा उन्हें राजधर्म, आपद्धर्म और मोक्षधर्म का उपदेश करना आदि वर्णित है। मोक्षपर्व में सृष्टि का रहस्य तथा अध्यात्म ज्ञान का विशेष निरूपण है। शान्ति पर्व में मंकगीता (अध्याय 177), “पराशरगीता” (अध्याय 290-98) तथा “हंसगीता” (अध्याय 299) भी हैं।
षष्टित्तम (60) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व) धर्मात्मा शूद्र राजा की आज्ञा लेकर अपनी इच्छा के अनुसार कोई धार्मिक कृत्य कर सकता है। अब मैं उसकी वृत्ति का वर्णन करूंगा, जिससे उसकी आजीविका चल सकती है। तीनों वर्णों को शूद्र का भरण पोषण अवश्य करना चाहिये; क्योंकि वह भरण-पोषण करने योग्य कहा गया है।
आपद्धर्म (=आपद्+धर्म) का अर्थ है संकट काल में अपनाया जाने वाला धर्म, विशेष परिस्थितियों में अपनाया जाने वाला धर्म। महाभारत के शान्ति पर्व इसी नाम से एक उपपर्व है। आपद्धर्म के सम्बन्ध में एक रोचक कथा छांदोग्य उपनिषद में है। यह कथा 'उषस्ति की कथा'नाम से जानी जाती है।
मोक्षधर्मपर्व (मोक्षधर्मपर्व). —शांति पर्व का एक उपविभागीय पर्व। इसमें शांति पर्व के अध्याय 174 से 365 तक शामिल हैं। पुराण (पुराण, पुराण) प्राचीन भारत के विशाल सांस्कृतिक इतिहास को संरक्षित करने वाले संस्कृत साहित्य को संदर्भित करता है, जिसमें ऐतिहासिक किंवदंतियाँ, धार्मिक समारोह, विभिन्न कलाएँ और विज्ञान शामिल हैं।
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