जानिए पोंगल का अर्थ और कैसे मनाते हैं पोंगल

पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक त्योहार है

Update: 2022-01-12 03:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक त्योहार है. जिसे 14 जनवरी से 17 जनवरी यानि 4 दिनों तक मनाया जाता है. मुख्य त्योहार पौष माह की प्रतिपदा को मनाया जाता है. मकर संक्रांति (Makar Sankranti) और लोहड़ी पर्व (Lohri Parv) की तरह ही पोंगल भी फसल के पक जाने और नई फसल के आने की खुशी में किसानों द्वारा मनाया जाता है. तमिल महीने 'तइ' की पहली तारीख से शुरू होता है पोंगल का त्योहार (Pongal Festival). इस दिन को दक्षिण भारत के लोग नए साल के रूप में भी मनाते हैं. पोंगल पर पुराने सामान को जला कर नए सामान को घर में लाने की परम्परा भी है. लोग घरों को सजाते हैं, और नए वस्त्र पहन कर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं.

क्यों मनाया जाता है पोंगल
पोंगल का त्योहार संपन्नता को समर्पित है. इस त्योहार में धान की फसल को एकत्र करने के बाद पोंगल त्योहार के रूप में अपनी खुशी प्रकट की जाती हैं, और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आने वाली फसलें भी अच्छी हों. पोंगल पर समृद्धि लाने के लिए वर्षा, सूर्य देव, इंद्रदेव और मवेशियों को पूजा जाता है.
पोंगल का अर्थ
पोंगल त्योहार के पहले जो अमावस्या पड़ती है उस दिन सभी लोग बुराई को त्याग कर अच्छाई को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेते हैं, जिसे 'पोही' कहा जाता है. पोही का अर्थ होता है 'जाने वाली' और तमिल भाषा में पोंगल का अर्थ उफान होता है. पोंगल का अगला दिन दिपावली की तरह धूमधाम से मनाया जाता है.
कैसे मनाते हैं पोंगल
चार दिन तक मनाए जाने वाले इस त्योहार में पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाते हैं, दूसरे दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, तीसरे दिन खेती में उपयोग होने वाले मवेशियों को पूजा जाता है, और चौथे दिन काली जी की पूजा की जाती है. इस त्योहार में घरों की पुताई की जाती है व रंगोली बनाई जाती है, मवेशियों को सजाया जाता है. नए कपड़े और नए बर्तन खरीदे जाते हैं. पोंगल में गाय के दूध में उफान को भी महत्वपूर्ण बताया गया है. माना जाता है कि दूध का उफान शुद्ध और शुभता का प्रतीक है. उसी तरह मन अच्छे विचारों और संस्कारों के साथ उज्जवल हो


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