रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

रुद्राक्ष (Rudraksh) दो शब्दों से बना है “रुद्र” और “अक्ष”, जहां रुद्र का अर्थ “शिव” और अक्ष का अर्थ “भगवान शिव की आंख”. रुद्राक्ष की उत्पत्ति कथा भगवान शिव से जुड़ी है

Update: 2022-07-26 04:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।    रुद्राक्ष (Rudraksh) दो शब्दों से बना है "रुद्र" और "अक्ष", जहां रुद्र का अर्थ "शिव" और अक्ष का अर्थ "भगवान शिव की आंख". रुद्राक्ष की उत्पत्ति कथा भगवान शिव से जुड़ी है. रुद्राक्ष की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. भगवान शिव की पूजा में रुद्राक्ष का भी विशेष महत्व है. सावन में रुद्राक्ष को विधि विधान से धारण करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद मिलता है. आइये जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई? इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में.

शिव के अश्रु से रुद्राक्ष की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव हजारों साल तक गहन ध्यान में चले गए थे. कहा जाता है कि शिव ने हजारों साल गहन ध्यान के बाद जब एक दिन अपनी आंखें खोलीं, तब उनके आंसुओं की बूंदें जमीन पर गिरी थीं, जिससे रुद्राक्ष के पेड़ विकसित हुए. रुद्र की आंखों से उत्पन्न होने के कारण इसे रुद्राक्ष का नाम दिया गया.
इसी तरह एक और पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार अपने अहंकार के कारण त्रिपुरासुर नामक दैत्य ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया. इसके पश्चात सभी देवगण भगवान ब्रह्मा, विष्णु और भोलेनाथ की शरण में गए. देवताओं की पीड़ा सुनकर भगवान भोलेनाथ गहरे ध्यान में चले गए और फिर जब शिव ने अपने नेत्र खोले तब उनकी आंखों से अश्रु बहे.
कहा जाता है कि जहां जहां उनके अश्रु गिरे, वहां वहां पेड़ उत्पन्न हुए. इन पेड़ों पर जो फल लगे, उनको रुद्राक्ष कहा जाने लगा. इसी तरह रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई.
सावन में मिलता है त्रिदेवों का आशीर्वाद
हिंदू धर्म के अनुसार, सावन महीने में पूर्णिमा या अमावस्या तिथि को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश का आशीर्वाद मिलता है. तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के जीवन में तेज आता है. मेष, वृश्चिक और धनु लग्न की राशि वाले लोगों के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना अति फलदायी माना जाता है.
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