रुद्राक्ष की का धार्मिक महत्व जगजाहिर है। मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है। रुद्राक्ष को प्राचीन काल से आभूषण के रूप में,सुरक्षा के लिए,ग्रह शांति के लिए और आध्यात्मिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। कुल मिलाकर मुख्य रूप से सत्तरह प्रकार के रुद्राक्ष पाए जाते हैं, परन्तु ग्यारह प्रकार के रुद्राक्ष विशेष रूप से प्रयोग में आते हैं। रुद्राक्ष का लाभ अदभुत होता है और प्रभाव सटीक पर यह तभी सम्भव है जब सोच समझकर नियमों का पालन करके रुद्राक्ष धारण किया जाय। बिना नियमों को जाने गलत तरीके से रुद्राक्ष को धारण करने से लाभ की जगह हानि भी हो सकती है।
रुद्राक्ष धारण करने के नियम
रुद्राक्ष कलाई , कंठ और ह्रदय पर धारण किया जा सकता है। इसे कंठ प्रदेश तक धारण करना सर्वोत्तम होगा।
कलाई में बारह,कंठ में छत्तीस और ह्रदय पर एक सौ आठ दानो को धारण करना चाहिए।
एक दाना भी धारण कर सकते हैं पर यह दाना ह्रदय तक होना चाहिए तथा लाल धागे में होना चाहिए.
सावन में,सोमवार को और शिवरात्री के दिन रुद्राक्ष धारण करना सर्वोत्तम होता है
रुद्राक्ष धारण करने के पूर्व उसे शिव जी को समर्पित करना चाहिए तथा उसी माला या रुद्राक्ष पर मंत्र जाप करना चाहिए .
जो लोग भी रुद्राक्ष धारण करते हैं उन्हें सात्विक रहना चाहिए तथा आचरण को शुद्ध रखना चाहिए अन्यथा रुद्राक्ष लाभकारी नहीं होगा।
विभिन्न रुद्राक्ष और उनका महत्व-
एक मुखी - यह साक्षात शिव का स्वरुप माना जाता है।
सिंह राशी वालों के लिए यह अत्यंत शुभ होता है।
जिनकी कुंडली में सूर्य से सम्बंधित समस्या हो ऐसे लोगों को एक मुखी रुद्राक्ष जरूर धारण करना चाहिए।
दो मुखी- यह अर्धनारीश्वर स्वरुप माना जाता है।
कर्क राशी के जातकों को यह अत्यंत उत्तम परिणाम देता है।
अगर वैवाहिक जीवन में समस्या हो या चन्द्रमा कमजोर हो दो मुखी रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी होता है।
तीन मुखी- यह रुद्राक्ष अग्नि और तेज का स्वरुप होता है।
मेष राशी और वृश्चिक राशी के लोगों के लिए यह उत्तम परिणाम देता है।
मंगल दोष के निवारण के लिए इसी रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है।
चार मुखी- यह रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरुप माना जाता है।
मिथुन और कन्या राशी के लिए सर्वोत्तम।
त्वचा के रोगों और वाणी की समस्या में इसका विशेष लाभ होता है.
पांच मुखी- इसको कालाग्नि भी कहा जाता है।
इसको धारण करने से मंत्र शक्ति तथा अदभुत ज्ञान प्राप्त होता है।
जिनकी राशी धनु या मीन हो या जिनको शिक्षा में लगातार बाधाएँ आ रही हों ,ऐसे लोगों को पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
छः मुखी- इसको भगवान कार्तिकेय का स्वरुप माना जाता है।
इसको धारण करने से व्यक्ति को आर्थिक और व्यवसायिक लाभ होता है।
अगर कुंडली में शुक्र कमजोर हो अथवा तुला या वृष राशी हो तो छः मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है।
सात मुखी- यह सप्तमातृका तथा सप्तऋषियों का स्वरुप माना जाता है।
मारक दशाओं में तथा अत्यंत गंभीर स्थितियों में इसको धारण करने से लाभ होता है।
अगर मृत्युतुल्य कष्टों का योग हो अथवा मकर या कुम्भ राशी हो तो यह अत्यंत लाभ देता है.
आठ मुखी- यह अष्टदेवियों का स्वरुप है तथा इसको धारण करने से अष्टसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
इसको धारण करने से आकस्मिक धन की प्राप्ति सहज होती है तथा किसी भी प्रकार के तंत्र मंत्र का असर नहीं होता।
जिनकी कुंडली में राहु से सम्बन्धी समस्याएँ हों ऐसे लोगों को इसे धारण करना शुभ होता है।
ग्यारह मुखी- एकादश मुखी रुद्राक्ष स्वयं शिव का स्वरुप माना जाता है।संतान सम्बन्धी समस्याओं के निवारण के लिए तथा संतान प्राप्ति के लिए इसको धारण करना शुभ होता है।
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