जानिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा का इस दिन के महत्व, क्या सूर्य और चंद्र देव व्रती से मिलेंगे महलाभ

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।

Update: 2020-12-23 11:25 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क| मार्गशीर्ष पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव और चंद्रदेव की अराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और ध्यान का भी विशेष महत्व होता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन इन तीनों चीजों को करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा 30 दिसंबर को है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि और शुभ मुहूर्त-

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 29 दिसंबर को शाम 7 बजकर 55 मिनट से शुरू होगी और 30 दिसंबर को रात 8 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पूर्णिमा तिथि को एक विशेष तिथि के तौर पर देखा जाता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूर्ण अस्तित्व में होता है। यह इस साल की आखिरी पूर्णिमा है। शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को पूर्णिमा या पूर्णमासी भी कहते हैं। इस दिन सूर्य देव और चंद्र देव अपने समसप्तक अवस्था में होते हैं।

 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के ठीक आमने-सामने होते हैं। इस दिन चंद्रमा का प्रभाव मनुष्य पर सबसे ज्यादा पड़ता है। चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। ऐसे में व्यक्ति को शांति के लिए इस दिन उपाय करने चाहिए।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा विधि-

सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान का ध्यान लगाएं और व्रत का संकल्प लें।

इसके बाद ॐ नमोः नारायण कहकर, श्री हरि का आह्वान करें।

इसके बाद भगवान को वस्त्र, पुष्प आदि अर्पित करें।

पूजा स्थल पर वेदी बनाएं और हवन के लिए अग्नि जलाएं।

इसके बाद हवन में घी और बूरा आदि की आहुति दें।

हवन समाप्त होने पर भगवान का ध्यान लगाएं।

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