जानिए झूलेलाल जयंती का महत्व, मनाने की विधि, मुहूर्त और कथा

हिंदू पंचांग के अनुसार चेटी चंड का त्योहार हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।

Update: 2022-04-03 06:57 GMT

जानिए झूलेलाल जयंती का महत्व, मनाने की विधि, मुहूर्त और कथा

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार चेटी चंड का त्योहार हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। चेटी चंड का पर्व सिंधी समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है। सिंधी समाज के लोग चेटी चंड के मौके पर अपने आराध्य देवता भगवान झूलेलाल के के जन्मोत्सव के रूप में बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार,भगवान झूलेलाल जल के देवता वरुण हैं। इस मौके पर सिंधी समाज के लोग जीवन में सुख-समृद्धि,वैभव और संपन्नता की कामना के लिए वरुण देवता की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं झूलेलाल जयंती का महत्व, मनाने की विधि, मुहूर्त और भगवान झूलेलाल की कथा।

चेटी चंड मुहूर्त
द्वितीया आरम्भ- अप्रैल 2, 2022 को 12:00:31 से
द्वितीया समाप्त- अप्रैल 3, 2022 को 12:40:38 पर
झूलेलाल जयंती (Jhulelal Jayanti 2022 Date)
झूलेलाल जयंती प्रति वर्ष चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। कहते हैं इसी दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था। इस बार यह तिथि 03 अप्रैल 2022 को मनाई जा रही है।
झूलेलाल जयंती का धार्मिक महत्व
झूलेलाल जयंती का पर्व सिंधी समाज के लोगों का प्रमुख त्योहार है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान झूलेलाल वरुण देवता के रूप हैं। कहते हैं सिंधी समाज के लोग जलमार्ग से यात्रा करते थे। ऐसे में वे अपनी यात्रा को सकुशल बनाने के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे और यात्रा सफल होने पर भगवान झूलेलाल का आभार व्यक्त किया जाता था। सिंधी समाज के लोग इसे नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं। चेटी चंड के मौके पर सिंधी समाज में शिशुओं का मंदिरों में मुंडन भी कराया जाता है। पूजन के दौरान सभी सिंधी समाज के लोग ''चेटी चंड जूं लख-लख वाधायूं'' का जय घोष करते हैं।
झूलेलाल जयंती से जुड़ी मान्यता
चेटी चंड के अवसर पर सिंधी समुदाय के लोग भगवान झूले लाल की शोभा यात्रा निकाली जाती है। झूलेलाल जयंती से जुड़ी मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सिंधु प्रांत में मिरखशाह नामक राजा था। जो लोगों पर अत्याचार करता था। इस क्रूर राजा के अत्याचारी शासन से मुक्ति के लिए लोगों ने 40 दिनों तक कठिन तप किया। लोगों की साधना से प्रसन्न होकर भगवान झूलेलाल स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने सिंध के लोगों से वादा किया कि वे 40 दिन बाद एक बालक के रूप में जन्म लेंगे और मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाएंगे। इसके बाद चैत्र माह की द्वितीया तिथि को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। उस बालक ने मिरखशाह के अत्याचार से सभी की रक्षा की। तब से आज ही के दिन से सिंधी समाज के लोग झूलेलाल जयंती उत्सव मनाते हैं।
झूलेलाल जयंती पूजा विधि
प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।
नदी, समुद्र या तालाब के पास एकत्रित हों।
इसके बाद विधि-विधान से भगवान झूलेलाल की आराधना करें।
पूजा सामाग्री को जल में प्रवाह करें।
अब भगवान झूलेलाल से अपने सुखी जीवन की कामना करें।
इसके बाद जलीय जीवों को चारा खिलाएं।
लोगों में मीठे चावल, उबले नमकीन चने और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है।
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