जानिए क्या है मुस्लिम वास्तु के चार चरण रोचक तथ्य

Update: 2024-06-25 07:46 GMT
मुस्लिम वास्तु के चार चरण:- Four stages of Muslim architecture
मुस्लिम वास्तु के तीन क्रमिक चरण स्पष्ट हैं There are three distinct phases of Muslim architecture। पहला चरण, जो बहुत थोड़े समय रहा, विजयदर्प और धर्मांधता से प्रेरित "निर्मूलन" का था, जिसके बारे में हसन निज़ामी लिखता है कि प्रत्येक किला जीतने के बाद उसके स्तंभ और नींव तक महाकाय हाथियों के पैरों तले रौंदवाकर धूल में मिला देने का रिवाज था। अनेक दुर्ग, नगर और मंदिर इसी प्रकार अस्तित्वहीन किए गए। तदनंतर दूसरा चरण सोद्देश्य और आंशिक विध्वंस का आया,
जिसमें इमारतें इसलिए तोड़ी गईं कि विजेताओं की मस्जिदों और मकबरों के of mosques and tombs लिए तैयार माल उपलब्ध हो सके Readymade goods should be available for the tombs। बड़ी-बड़ी धरनें और स्तम्भ अपने स्थान से हटाकर नई जगह ले जाने के लिए भी हाथियों का ही प्रयोग हुआ। प्रय: इसी काल में मंदिरों को विशेष क्षति पहुँची,
जो विजित प्रांतों की नई नई राजधानियों के निर्माण के लिए तैयार माल की खान बन गए और उत्तर भारत
से हिंदू वास्तु की प्राय: सफ़ाई ही हो गई। अंतिम चरण तब आरंभ हुआ, जब आक्रांता अनेक भागों में भली भाँति जग गए थे और उन्होंने प्रत्यवस्थापन के बजाय योजनाबद्ध निर्माण द्वारा सुविन्यस्त और उत्कृष्ट वास्तुकृतियाँ वस्तुत कीं।
मुस्लिम वास्तु की तीन शैलियाँ
शैलियों की दृष्टि से भी मुस्लिम वास्तु के तीन वर्ग हो सकते हैं There can be three categories of Muslim architecture पहली दिल्ली शैली, अथवा शहंशाही शैली है, जिसे प्राय: "पठान वास्तु" (1193-1554) कहते हैं (यद्यपि इसके सभी पोषक "पठान" नहीं थे)। इस वर्ग में दिल्ली की कुतुबमीनार (1200), सुल्तान गढ़ी (1231),
अल्तमश का मकबरा (1236), अलाई दरवाज़ा (1305), निजामुद्दीन (1320), गयासुद्दीन तुगलक (1325) और फीरोजशाह तुगलक (1388) के मकबरे, कोटला फीरोजशाह (1354-1490), मुबारकशाह का मकबरा (1434), मेरठ की मस्जिद (1505), शेरशाह की मस्जिद (1540-45) सहसराम का शेरशाह का मकबरा (1540-45) और अजमेर का अढ़ाई दिन का झोंपड़ा (1205) आदि उल्लेखनीय हैं।
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