गणगौर तीज 2021
शुभ तिथि- 15 अप्रैल 2021 (गुरुवार)
चैत्र शुक्ल तृतीया प्रारंभ- 14 अप्रैल दोपहर 12:47 बजे से,
चैत्र शुक्ल तृतीया समाप्त- 15 अप्रैल दोपहर 03:27 बजे तक.
गणगौर पूजा शुभ मुहूर्त- 15 अप्रैल को सुबह 05:17 बजे से सुबह 06:52 बजे तक.
कुल अवधि- 35 मिनट.
गणगौर पूजा सामग्री
चौकी, तांबे का कलश, काली मिट्टी, श्रृंगार की वस्तुएं, होली की राख, गाय का गोबर या मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के दीपक, कुमकुम, हल्दी, चावल, बिंदी, मेंहदी, गुलाल और अबीर, काजल, घी, फूल, आम के पत्ते, पानी से भरे कलश, नारियल, सुपारी, गणगौर के वस्त्र, गेहूं और बांस की टोकरी, चुनरी, कौड़ी, सिक्के, पुड़ी, घेवर, हलवा इत्यादि.
गणगौर व्रत पूजा विधि
चैत्र शुक्ल द्वितीया को किसी पवित्र तीर्थ स्थल या आस-पास की झील पर जाएं और वहां माता गौरी को स्नान कराएं. इसके बाद चैत्र शुक्ल की तृतीया यानी गणगौर तीज पर व्रत रखें और विधि-विधान से गणगौर की पूजा करें. पूजा के दौरान घी का दीपक जलाएं. मिट्टी से बने गणगौर का हल्दी और कुमकुम से तिलक करें. माता गौरी को सिंदूर, अखंड फूल चढ़ाएं और उनके माथे पर सिंदूर लगाएं. इसके बाद एक कागज लें और उस पर 16 मेहंदी, 16 कुमकुम और 16 काजल के डॉट्स बनाएं, फिर मां गौरी को अर्पित करें. गणगौर व्रत की कथा पढ़ें या सुनें और आरती उतारें. पूजन समाप्त होने के बाद गणगौर का किसी पवित्र जल में विसर्जन करें.
गणगौर व्रत का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता गौरा यानी माता पार्वती होली के दूसरे दिन अपने घर आती हैं और आठ दिनों बाद भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं, इसलिए यह त्योहार होली से शुरु होता है. इस दिन सुहागन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के भगवान शिव और माता पार्वती को बनाकर पूजा करती हैं. इसके बाद गणगौर यानी शिव-पार्वती को चैत्र शुक्ल तृतीया को विदाई दी जाती है, इसलिए इसे गणगौर तीज कहा जाता है. इसी दिन शाम को गणगौर का विसर्जन किया जाता है. गणगौर तीज का व्रत सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की कामना से करती हैं.
गौरतलब है कि गणगौर के पर्व को राजस्थान और मध्य प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन सुहागन महिलाएं और लड़कियां व्रत रखकर भगवान शिव (ईसर जी) और माता पार्वती (गौरी) की पूजा करती हैं. पूजा के दिन रेणुका का ध्यान करके उन पर महावर, सिंदूर और चूड़ियां अर्पित करने का विशेष प्रावधान है. इसके साथ ही चंदन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है.