जानिए अचला सप्तमी व्रत का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि

अचला सप्तमी के दिन होती है सूर्य देव की पूजा

Update: 2021-02-17 13:18 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शास्त्रों में जिस तरह कार्तिक मास को बेहद उत्तम बताया गया है, ठीक उसी तरह माघ के महीने को भी बेहद पवित्र और पुण्य देने वाला बताया गया है. इस दौरान आने वाले व्रत-त्योहार और पूजा-पाठ का विशेष पौराणिक महत्व होता है. इसी क्रम में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी  मनायी जाती है जो इस साल 19 फरवरी शुक्रवार को है. इसे रथ सप्तमी  या आरोग्य सप्तमी  के नाम से भी जाना जाता है. भविष्य पुराण के अनुसार अचला सप्तमी के दिन ही भगवान सूर्य का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को सूर्य की जन्मतिथि के रूप में भी जाना जाता है.

अचला सप्तमी के दिन होती है सूर्य देव की पूजा
इस दिन रथ पर सवार भगवान भास्कर यानी सूर्य देव (Sun God) की पूजा होती है जिससे जीवन में सुख, सम्मान की प्राप्ति होती है और इसीलिए इस दिन को रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा भगवान सूर्य, भक्तों को अच्छी सेहत (Good Health) का भी वरदान देते हैं. इसलिए इसे आरोग्‍य सप्‍तमी भी कहा जाता है. अचला सप्तमी के दिन को धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य जयंती होती है
अचला सप्तमी का शुभ मुहूर्त
अचला सप्तमी- 19 फरवरी 2021, शुक्रवार
रथ सप्तमी के दिन स्नान का मूहूर्त- सुबह 5.14 बजे से 6.56 बजे तक
अवधि- 1 घंटा 42 मिनट
अचला सप्तमी के दिन सूर्योदय- सुबह 6.56 बजे
सप्तमी तिथि प्रारंभ- 18 फरवरी, गुरुवार सुबह 8.17 बजे से
सप्तमी तिथि समाप्त- 19 फरवरी, शुक्रवार सुबह 10.58 बजे
(चूंकि उदया तिथि मानी जाती है इसलिए अचला सप्तमी का व्रत शुक्रवार 19 फरवरी को रखा जाएगा)
अचला सप्तमी का महत्व

अचला सप्तमी के दिन सूर्य की पूजा और उपवास करने से संतान की प्राप्ति होती है और साधक को आरोग्य यानी उत्तम स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान करने से व्यक्ति के कई जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं. इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है इसलिए इस दिन स्नान और फिर दान का विशेष महत्व है.
अचला सप्तमी की पूजा विधि

प्रातःकाल उठकर सूर्योदय से पहले ही शुद्ध जल से स्नान करें. इस दिन गंगा आदि पवित्र नदियों में भी स्नान करने का बड़ा महत्व है. स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें. सूर्य देव की पूजा करें और फिर सूर्य स्तोत्र, सूर्य कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र या सूर्य के बीज मंत्र का जाप करना बहुत ही फलदायी होता है. सूर्य को दीपदान करना और पवित्र नदियों में दीपक प्रवाहित करना भी शुभ माना जाता है. इस दिन व्रत रख कर नमक और तेल के सेवन से बचना चाहिए और केवल फलाहार ही करना चाहिए.


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