जाने नागराज तक्षक के इस मंदिर को सिर्फ नाग पंचमी के दिन खोला जाता है

हर साल सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है. इस दिन नागों की पूजा का चलन है. आज नाग पंचमी के इस मौके पर जानिए नागचंद्रेश्वर मंदिर की कहानी जहां स्वयं नागराज तक्षक वास करते हैं.

Update: 2021-08-13 03:19 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में नागों को पूज्यनीय माना जाता है. वासुकि नाग जहां भगवान शिव के गले का आभूषण है, तो शेषनाग पर भगवान विष्णु शयन करते हैं. जिस तरह सभी देवी देवताओं के पूजन के लिए तमाम विशेष दिन बनाए गए हैं, उसी तरह नागों की पूजा के लिए भी नाग पंचमी का दिन है. नाग पंचमी हर साल सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से इस बार आज नाग पंचमी 13 अगस्त शुक्रवार के दिन मनाई जा रही है.

नाग पंचमी के इस मौके पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं, नाग देवता के एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसके पट पूरे साल में सिर्फ नाग पंचमी के दिन 24 घंटे के लिए खुलते हैं. हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर की. कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वयं नागराज तक्षक निवास करते हैं. हालांकि कोरोना की वजह से इस साल श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन नहीं कर पाएंगे. इस साल भक्तों को ऑनलाइन लाइव दर्शन की व्यवस्था की गई है.
महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे खंड पर स्थित है ये मंदिर
12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर की देशभर में मान्यता है. ये मंदिर तीन खंडों में विभाजित है. सबसे नीचे भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओमकारेश्वर और तीसरे खंड में भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है. इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती जी बैठे हैं. कहा जाता है कि इस प्रतिमा को नेपाल से लाया गया था.
दुनिया में कहीं नहीं है इस मंदिर जैसी प्रतिमा
आमतौर पर विष्णु भगवान को नाग शैय्या पर विराजमान दिखाया जाता है, लेकिन यहां नाग की प्रतिमा पर भोलेनाथ गणेश जी और माता पार्वती के साथ दसमुखी सर्प शैय्या पर विराजमान हैं और शिव जी के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं. कहा जाता है नागचंद्रेश्वर मंदिर जैसी प्रतिमा पूरी दुनिया में किसी अन्य मंदिर में नहीं है.
ये है तक्षक नाग को लेकर मान्यता
कहा जाता है कि एक बार सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया. इसके बाद महादेव ने तक्षकराज को अमर होने का वरदान दे दिया. शिव जी से ये वरदान पाने के बाद तक्षक ने प्रभु के सानिध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. उन्होंने महाकाल का स्थान इसलिए चुना ताकि वे एकांत में रह सकें और उस स्थान पर कोई विघ्न न हो. मान्यता है कि सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही सर्प राज के दर्शन मिलते हैं. शेष समय उनके सम्मान के लिए मंदिर को बंद रखा जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी व्यक्ति नाग पंचमी के दिन दर्शन करने के लिए आता है, वो किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है. इसलिए हर साल नाग पंचमी के दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है.


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