जानिए इस कथा के अनुसार, किसी काम की पूरी जानकारी न हो, तब तक नहीं करनी चाहिए काम की शुरुआत
जब कौरवों और पांडवों का युद्ध अंतिम दौर में चल रहा था, दुर्योधन ने मरने से पहले अश्वत्थामा को कौरव सेना का सेनापति बना दिया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महाभारत में जब द्रोणाचार्य अर्जुन और अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र चलाना सिखा रहे थे, तब अश्वथामा ने सिर्फ ब्रह्मास्त्र को चलाने के बारे में ही सीखा, उसे लौटाने की विधि नहीं समझी थी। उसने इस विद्या में लापरवाही कर दी। इसका असर महाभारत युद्ध में देखने को मिला।
जब कौरवों और पांडवों का युद्ध अंतिम दौर में चल रहा था, दुर्योधन ने मरने से पहले अश्वत्थामा को कौरव सेना का सेनापति बना दिया। अश्वथामा ने पांडवों के पांच पुत्रों, पांडव सेनापति धृष्टधुम्न और शिखंडी सहित कई योद्धाओं को अकेले ही मार दिया।
इसके बाद अर्जुन और अश्वथामा आमने-सामने आ गए। दोनों ही द्रोणाचार्य के शिष्य थे। युद्धकला में भी पारंगत थे। अश्वथामा ने अर्जुन को हराने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। इस कारण उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। गुस्से में अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र चला दिया। इसका जवाब अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र से ही दिया।
एक साथ दो-दो ब्रह्मास्त्र चले, अगर ये दोनों टकरा जाते तो पूरी धरती ही खत्म हो जाती। धरती को बचाने के लिए वेदव्यास वहां पहुंचे। उन्होंने अर्जुन और अश्वत्थामा को समझाया, उनसे ब्रह्मास्त्र वापस लेने के लिए कहा।
अर्जुन ने व्यासजी की बात मानकर ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र वापस नहीं ले पा रहा था। जब व्यासजी ने इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि मुझे इसे वापस लेने की विधि नहीं आती। ये सुनकर वेदव्यास गुस्सा हो गए और बोले कि जब तुम्हें पूरी विधि मालूम ही नहीं थी, तो ब्रह्मास्त्र चलाया ही क्यों?
अश्वत्थामा ने कहा मुझे इसे लौटाना नहीं आता, लेकिन मैं इसकी दिशा बदल दूंगा, इसे वहां भेज दूंगा, जहां से पांडवों का वंश आगे बढ़ना है। ऐसा कहकर अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया। उस समय उत्तरा गर्भवती थी और पांडवों के वंश की आखिरी संतान परीक्षित उसके गर्भ में थे। ब्रह्मास्त्र के वार से परीक्षित की गर्भ में ही मौत हो गई।
तब भगवान कृष्ण ने परीक्षित को जीवित किया। गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या के कारण कृष्ण ने अश्वत्थामा को सजा दी। अश्वत्थामा के माथे पर जन्म के समय से ही एक मणि थी, जिसके कारण वो अमर था। भगवान कृष्ण ने वो मणि निकालकर उसे कलियुग के अंत तक भटकते रहने का श्राप दिया।
सीख - किसी भी चीज का अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। जब तक किसी काम की पूरी जानकारी न हो, तब तक काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। कोई नया काम सीखें तो सतर्क रहें, लापरवाही न करें, सारी बातें अच्छी तरह समझें।